मघवान् का रक्षण, आयु का परिचय
पदार्थान्वयभाषाः - [१] (यद्) = जब (अज्ञातेषु वृजनेषु) = अज्ञात संग्रामों में 'किसका विजय होगा, किसका नहीं ' इस बात का जिनमें पता नहीं, ऐसे युद्धों में आसम्-मैं होता हूँ, अर्थात् जब इन संग्रामों में युद्ध करते हुए ये लोग मेरा स्मरण करते हैं तो विश्वे मघवान :- सब ऐश्वर्यशाली यज्ञशील [मघ- मख] पुरुष (सतः मे) = सर्वत्र वर्तमान मेरे (आसन्) = होते हैं, अर्थात् जो अपने ऐश्वर्यों का विनियोग यज्ञों में करते हैं उनका मैं रक्षण करता हूँ [२] और (क्षेमे) = जगत् के कल्याण के निमित्त (आसन्तम्) = चारों ओर होनेवाले, अर्थात् सर्वत्र अपना पैर फैलानेवाले (आभुम्) = सारे चीजों को प्राप्त करने के प्रयत्नवाले परिग्रही (तम्) = उस पुरुष को (पादगृह्य) = पाओं से पकड़ के (पर्वते प्रक्षिणाम्) = पर्वत पर फेंक देता हूँ, पहुँचा देता हूँ, अर्थात् ऐसे पुरुष को मैं सुदूर विनष्ट कर देता हूँ। [३] युद्ध होता है, और युद्ध में धर्म्य पक्षवाले को प्रभु विजयी करते हैं। अधर्म के पक्ष का विनाश होता है। इसे प्रभु सुदूर फेंक-सा देते हैं ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - ऐश्वर्यों का यज्ञों में विनियोग करनेवालों का प्रभु रक्षण करते हैं और परिग्रही आसुरी वृत्तिवालों का विनाश। इस प्रकार ही प्रभु संसार का कल्याण करते हैं ।