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अग्ने॒ऽअच्छा॑ वदे॒ह नः॒ प्रति॑ नः सु॒मना॑ भव। प्र नो॑ यच्छ सहस्रजि॒त् त्वꣳ हि ध॑न॒दाऽअसि॒ स्वाहा॑ ॥२८॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अग्ने॑। अच्छ॑। व॒द॒। इ॒ह। नः॒। प्रति॑। नः॒। सु॒मना॒ इति॑ सु॒ऽमनाः॑। भ॒व॒। प्र। नः॒। य॒च्छ॒। स॒ह॒स्र॒जि॒दिति॑ सहस्रऽजित्। त्वम्। हि। ध॒न॒दा॒ इति॑ धन॒ऽदाः। असि॒। स्वाहा॑ ॥२८॥

यजुर्वेद » अध्याय:9» मन्त्र:28


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वह राजा क्या करे, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) विद्वन् ! आप (इह) इस समय में (स्वाहा) सत्य वाणी से (नः) हम को (अच्छ) अच्छे प्रकार (वद) सत्य उपदेश कीजिये (नः) हमारे ऊपर (सुमनाः) मित्रभावयुक्त (भव) हूजिये (हि) जिससे आप (सहस्रजित्) विना सहाय हजार को जीतने (धनदाः) ऐश्वर्य्य देनेवाले (असि) हैं, इससे (नः) हमारे लिये (प्रयच्छ) दीजिये ॥२८॥
भावार्थभाषाः - ईश्वर उपदेश करता है कि राजा, प्रजा और सेनाजन मनुष्यों से सदा सत्य प्रिय वचन कहे, उनको धन दे, उनसे धन ले। शरीर आत्मा का बल बढ़ा और नित्य शत्रुओं को जीतकर धर्म से प्रजा को पाले ॥२८॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः स राजा किं किं कुर्य्यादित्याह ॥

अन्वय:

(अग्ने) विद्वन् (अच्छ) सम्यक्, निपातस्य च। (अष्टा०६.३.१३६) इति दीर्घः (वद) सत्यमुपदिश (इह) अस्मिन् समये (नः) अस्मान् (प्रति) (नः) अस्मान् (सुमनाः) सुहृद्भावः (भव) (प्र) (नः) अस्मभ्यम् (यच्छ) देहि (सहस्रजित्) असहायः सन् सहस्रं योद्धॄन् जेतुं शीलः (त्वम्) (हि) यतः (धनदाः) ऐश्वर्य्यदाता (असि) (स्वाहा) सत्यया वाण्या। अयं मन्त्रः (शत०५.२.२.१०) व्याख्यातः ॥२८॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे अग्ने ! त्वमिह स्वाहा नोऽच्छ वद, नोऽस्मान् प्रति सुमना भव। त्वं हि सहस्रजिद् धनदा असि, तस्मान्नः सुखं प्रयच्छ ॥२८॥
भावार्थभाषाः - ईश्वर आह राजा प्रजासेनाजनान् प्रति सदा सत्यं प्रियं च दद्याद् गृह्णीयाच्च, शरीरात्मबलं वर्धित्वा नित्यं शत्रून् जित्वा धर्मेण प्रजाः पालयेदिति ॥२८॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - ईश्वर असा उपदेश करतो की राजाने प्रजा व सेना यांच्याबरोबर नेहमी सत्य व मधुर बोलावे व त्यांना धन देऊन मदत करावी (प्रजेकडून) धन घ्यावे. शरीर व आत्म्याचे बल वाढवावे व सदैव शत्रूंना जिंकून धर्माने प्रजेचे पालन करावे.