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विश्वे॑ देवास॒ऽआग॑त शृणु॒ता म॑ऽइ॒मꣳ हव॑म्। एदं ब॒र्हिर्निषी॑दत। उ॒प॒या॒मगृ॑हीतोऽसि॒ विश्वे॑भ्यस्त्वा दे॒वेभ्य॑ऽए॒ष ते॒ योनि॒र्विश्वे॑भ्यस्त्वा दे॒वेभ्यः॑ ॥३४॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

विश्वे॑। दे॒वा॒सः॒। आ। ग॒त॒। शृ॒णु॒त। मे॒। इ॒मम्। हव॑म्। आ। इ॒दम्। ब॒र्हिः। नि। सी॒द॒त॒। उ॒प॒या॒मगृ॑हीत इत्यु॑पया॒मऽगृ॑हीतः। अ॒सि॒। विश्वे॑भ्यः। त्वा॒। दे॒वेभ्यः॑। ए॒षः। ते॒। योनिः॑। विश्वे॑भ्यः। त्वा। दे॒वेभ्यः॑ ॥३४॥

यजुर्वेद » अध्याय:7» मन्त्र:34


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब प्रतिदिन पढ़ाने की योग्यता का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे पूर्वमन्त्रप्रतिपादित गुणकर्म्मस्वभाववाले (विश्वे देवासः) समस्त विद्वान् लोगो ! आप हमारे समीप (आगत) आइये और हम लोगों के दिये हुए (इदम्) इस (बर्हिः) आसन पर (आ निषीदत) यथावकाश सुखपूर्वक बैठिये (मे) मेरी (हवम्) इस स्तुतियुक्त वाणी को (शृणुत) सुनिये। गृहस्थ अपने पुत्रादिकों के प्रति कहे कि हे पुत्र ! जिस कारण तू (उपयामगृहीतः) विद्वानों का ग्रहण किया हुआ (असि) है, इससे हम (त्वा) तुझे (विश्वेभ्यः) समस्त (देवेभ्यः) अच्छे-अच्छे विद्या पढ़ानेवाले विद्वानों को सौंपें, जिसलिये (एषः) यह समस्त विद्या का संग्रह (ते) तेरा (योनिः) घर के तुल्य है, इसलिये (त्वा) तुझे (विश्वेभ्यः) (देवेभ्यः) समस्त उक्त महाशयों से विद्या दिलाना चाहते हैं ॥३४॥
भावार्थभाषाः - विद्वान् लोगों को उचित है कि प्रतिदिन विद्यार्थियों को पढ़ावें और परम विद्वान् पण्डित लोग उन की परीक्षा भी प्रत्येक महीने में किया करें। उस परीक्षा से जो तीक्ष्णबुद्धियुक्त परिश्रम करनेवाले प्रतीत हों, उनको अत्यन्त परिश्रम से पढ़ाया करें ॥३४॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ प्रत्यहमध्यापनविषयमाह ॥

अन्वय:

(विश्वे) सर्वे (देवासः) विद्वांसः (आ) (गत) आगच्छत (शृणुत) अत्र संहितायाम्। (अष्टा०६.३.११४) इति दीर्घः। (मे) मम विद्यार्थिनः (इमम्) वक्ष्यमाणम् (हवम्) स्तुतिवादम् (आ) समन्तात् (इदम्) अस्माभिर्दत्तम् (बर्हिः) उत्तममासनम् (नि) नितराम् (सीदत) आध्वम् (उपयामगृहीतः) (असि) (विश्वेभ्यः) समस्तेभ्यः (त्वा) त्वाम् (देवेभ्यः) अध्यापकेभ्यः (एषः) सकलविद्यासंग्रहः (ते) तव (योनिः) गृहम् (विश्वेभ्यः) (त्वा) त्वाम् (देवेभ्यः) ॥ अयं मन्त्रः (शत०४.२.५.२६) व्याख्यातः ॥३४॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे पूर्वमन्त्रप्रतिपादितगुणकर्म्मस्वभावा विश्वे देवासो यूयमस्माकं निकटमागत अस्माभिर्दत्तमिदं बर्हिरासनमानिषीदत, मे ममेमं हवं शृणुत। गृहस्थाः स्वपुत्रादीन् प्रत्येवं ब्रूयुर्यतस्त्वमुपयामगृहीतोऽसि तस्मात् त्वा त्वां विश्वेभ्यो देवेभ्यो प्रयच्छेम, ते तवैष योनिरस्ति, त्वा त्वां विश्वेभ्यो देवेभ्योऽधिकां विद्यां दापयेम ॥३४॥
भावार्थभाषाः - एके विद्वांसोऽन्वहं विद्यार्थिनः पाठयेयुरपरे विपश्चितो विद्वांसः प्रतिमासमध्येतॄणां परीक्षणं च कुर्य्युः। तत्कृत्वाऽध्यापकाः प्रतीततीव्रबुद्धीन् परिश्रमं कुर्वतोऽध्येतॄनतिश्रमेण पाठयेयुरिति ॥३४॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - विद्वान लोकांनी दररोज विद्यार्थ्यांना शिकवावे व अत्यंत विद्वान पंडित लोकांनी प्रत्येक महिन्यात त्यांची परीक्षा घ्यावी. त्या परीक्षेतही जे तीक्ष्ण व कुशाग्र बुद्धीचे असून परिश्रमी असतील त्यांना अधिक मेहनत घेऊन शिकवावे.