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यम॑ग्ने पृ॒त्सु मर्त्य॒मवा॒ वाजे॑षु॒ यं जु॒नाः। स यन्ता॒ शश्व॑ती॒रिषः॒ स्वाहा॑ ॥२९॥

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पद पाठ

यम्। अ॒ग्ने॒। पृत्स्विति॑ पृ॒त्ऽसु। मर्त्य॑म्। अवाः॑। वाजे॑षु। यम्। जु॒नाः। सः। यन्ता॑। शश्व॑तीः। इषः॑। स्वाहा॑ ॥२९॥

यजुर्वेद » अध्याय:6» मन्त्र:29


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब वह अध्यापक को क्या कहता है, यह अगले मन्त्र में उपदेश किया है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) सब कभी विवेक के करनेवाले आप ! (पृत्सु) संग्रामों में (यम्) जिस मनुष्य की (अवाः) रक्षा करते और (वाजेषु) अन्न आदि पदार्थों की सिद्धि करने के निमित्त (यम्) जिसको (जुनाः) नियुक्त करते हो (सः) वह (शश्वतीः) निरन्तर अनादिरूप (इषः) अपनी प्रजाओं का (यन्ता) निर्वाह करने हारा होता है अर्थात् उन के नियमों को पहुँचाता है ॥२९॥
भावार्थभाषाः - गुरुजनों की शिक्षा से सब का सुख बढ़ता ही है ॥२९॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ स विद्वांसं किमाहेत्युपदिश्यते ॥

अन्वय:

(यम्) (अग्ने) सर्वगुणवर ! (पृत्सु) संग्रामेषु। पृत्स्विति संग्रामनामसु पठितम्। (निघं०२.१७) (मर्त्यम्) मनुष्यम् (अवाः) रक्षेः (वाजेषु) अन्ननिमित्तक्षेत्रादिषु (यम्) (जुनाः) गमयेः (सः) (यन्ता) (शश्वतीः) अविनश्वराः (इषः) इष्यन्ते यास्ताः प्रजाः (स्वाहा) उत्साहिकया वाचा ॥ अयं मन्त्रः (शत०३.९.३.३१-३२) व्याख्यातः ॥२९॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे अग्ने त्वं ! पृत्सु यं मर्त्यमवा यं च वाजेषु जुनाः स शश्वतीरिषो यन्ता स्यात् ॥२९॥
भावार्थभाषाः - गुरुशिक्षया सर्वस्य सुखं वर्द्धत एव ॥२९॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - गुरुजनांच्या शिकवणुकीमुळे सर्वांच्या सुखात वाढ होते.