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इन्द्र॑स्य॒ स्यूर॒सीन्द्र॑स्य ध्रु॒वो᳖ऽसि ऐ॒न्द्रम॑सि वैश्वदे॒वम॑सि ॥३०॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

इन्द्र॑स्य। स्यूः। अ॒सि॒। इन्द्र॑स्य। ध्रु॒वः। अ॒सि॒। ऐ॒न्द्रम्। अ॒सि॒। वै॒श्व॒दे॒वमिति॑ वैश्वऽदे॒वम्। अ॒सि॒ ॥३०॥

यजुर्वेद » अध्याय:5» मन्त्र:30


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वे कैसे हैं, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे जगदीश्वर वा सभाध्यक्ष ! जैसे (वैश्वदेवम्) समस्त पदार्थों का निवास स्थान अन्तरिक्ष है, वैसे आप (ऐन्द्रम) सब के आधार हैं, इसी से हम लोगों को (इन्द्रस्य) परमैश्वर्य का (स्यूः) संयोग करनेवाले (असि) हैं और (इन्द्रस्य) सूर्य आदि लोक वा राज्य को (ध्रुवः) निश्चल करनेवाले (असि) हैं ॥३०॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में श्लेष और उपमालङ्कार हैं। सकल ऐश्वर्य्य का देनेवाला जगदीश्वर है, वैसे सभाध्यक्षादि मनुष्यों को होना चाहिये ॥३०॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तौ कथंभूतावित्युपदिश्यते ॥

अन्वय:

(इन्द्रस्य) परमैश्वर्यस्य (स्यूः) यः सीव्यति सह योजयति सः (असि) भवसि। (इन्द्रस्य) सूर्य्यादे राज्यस्य वा (ध्रुवः) निश्चलो निश्चलकर्त्ता। (असि) (ऐन्द्रम्) इन्द्रस्य परमैश्वर्यस्येदमधिकरणम्। (असि) (वैश्वदेवम्) यथा विश्वेषां देवानामिदमन्तरिक्षमधिकरणं तथा (असि)। अयं मन्त्रः (शत०३.६.१.२५-२६) व्याख्यातः ॥३०॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे जगदीश्वर वा सभाध्यक्ष ! यथा वैश्वदेवमन्तरिक्षमस्ति, तथा त्वमैन्द्रं परमैश्वर्य्यस्याधिकरणमसि। अत एव सर्वेषामस्मदादीनामिन्द्रस्य परमैश्वर्य्यस्य स्यूरसि, इन्द्रस्य सूर्यादिलोकस्य राज्यस्य वा ध्रुवोऽसि ॥३०॥
भावार्थभाषाः - अत्र श्लेषोपमालङ्कारौ। यथा सकलैश्वर्याधिष्ठानमीश्वरोऽस्ति, तथा सभाध्यक्षादिभिरपि भवितव्यम् ॥३०॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात श्लेष व उपमालंकार आहेत. जसे परमेश्वर संपूर्ण ऐश्वर्य देतो तसे राजा इत्यादींनीही बनावे.