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प्र तद्विष्णु॑ स्तवते वी॒र्य्ये᳖ण मृ॒गो न भी॒मः कु॑च॒रो गि॑रि॒ष्ठाः। यस्यो॒रुषु॑ त्रि॒षु वि॒क्रम॑णेष्वधिक्षि॒यन्ति॒ भुव॑नानि॒ विश्वा॑ ॥२०॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

प्र। तत्। विष्णुः॑। स्त॒व॒ते॒। वी॒र्ये᳖ण। मृ॒गः। न। भी॒मः। कु॒च॒रः। गि॒रि॒ष्ठाः। गि॒रि॒स्था इति॑ गिरि॒ऽस्थाः। यस्य॑। उ॒रुषु॑। त्रि॒षु। वि॒क्रम॑णे॒ष्विति॑ वि॒ऽक्रम॑णेषु। अ॒धि॒क्षि॒यन्तीत्य॑धिऽक्षि॒यन्ति॑। भुव॑नानि। विश्वा॑ ॥२०॥

यजुर्वेद » अध्याय:5» मन्त्र:20


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वह कैसा है, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यस्य) जिसके (उरुषु) अत्यन्त (त्रिषु) (विक्रमणेषु) विविध प्रकार के क्रमों में (विश्वा) सब (भुवनानि) लोक (अधिक्षियन्ति) निवास करते हैं और वह (विष्णुः) व्यापक ईश्वर (वीर्येण) अपने पराक्रम से (भीमः) भय करनेवाले (कुचरः) निन्दित प्राणिवध को करने और (गिरिष्ठाः) पर्वत में रहनेवाले (मृगः) सिंह के (न) समान पापियों को घोर दुःख देता हुआ (प्रस्तवते) उपदेश करता है, (तत्) इससे उसको कभी न भूलना चाहिये ॥२०॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे सिंह अपने पराक्रम से अपनी इच्छा के समान अन्य पशुओं का नियम करता फिरता है, वैसे जगदीश्वर अपने पराक्रम से सब लोकों का नियम करता है ॥२०॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते ॥

अन्वय:

(प्र) प्रकृष्टार्थे (तत्) तस्मात् (विष्णुः) व्यापकेश्वरः (स्तवते) स्तौत्युपदिशति। अत्र बहुलं छन्दसि। [अष्टा०२.४.७३] इति शपो ह्यलुक्। (वीर्येण) पराक्रमेण (मृगः) यो मार्ष्ट्यन्विच्छति वधाय जीवानिति ईश्वरपक्षे तु मार्ष्टि व्यवस्थापनाय जीवानिति (न) इव (भीमः) बिभ्यति जीवा अस्मादिति व्याघ्रः। भीमादयोऽपादाने। [अष्टा०३.४.७५] इति निपातनात्। (कुचरः) यः कुत्सितं प्राणिवधं चरति। (गिरिष्ठाः) गिरौ तिष्ठतीति। क्विबन्तोऽयं प्रयोगः। (यस्य) (उरुषु) बहुषु (त्रिषु) त्रिविधेषु जगत्सु (विक्रमणेषु) विविधक्रमेषु (अधिक्षियन्ति) निवसन्ति (भुवनानि) लोकजातानि (विश्वा) सर्वाणि। अयं मन्त्रः (शत०३.५.३.२३) व्याख्यातः ॥२०॥

पदार्थान्वयभाषाः - यस्योरुषु त्रिषु विक्रमणेषु विश्वानि भुवनान्यधिक्षियन्ति, यश्चासौ विष्णुर्वीर्येण भीमः कुचरो गिरिष्ठा मृगो न सिंह इव विचरन्नुपदिशति, तत् तस्मात् स नैव कदापि विस्मरणीयः ॥२०॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। यथा सिंहः स्वपराक्रमेण यथेष्टं विक्रमते, तथैव जगदीश्वरः खलु पराक्रमेण सर्वान् लोकान् नियच्छति ॥२०॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जसा पराक्रमी सिंह आपल्या इच्छेप्रमाणे सर्व प्राण्यांवर नियंत्रण ठेवतो. तसे परमेश्वर आपल्या सामर्थ्याने सर्व लोकांवर नियंत्रण ठेवतो.