वांछित मन्त्र चुनें

परि॑ माग्ने॒ दुश्च॑रिताद् बाध॒स्वा मा॒ सुच॑रिते भज। उदायु॑षा स्वा॒युषोद॑स्थाम॒मृताँ॒२ऽअनु॑ ॥२८॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

परि॑। मा॒। अ॒ग्ने॒। दुश्च॑रिता॒दिति॒ दुःऽच॑रितात्। बा॒ध॒स्व॒। आ। मा॒। सुच॑रित॒ इति॒ सुऽच॑रिते। भ॒ज॒। उत्। आयु॑षा। स्वा॒युषेति॑ सुऽआ॒युषा॑। उत्। अ॒स्था॒म्। अ॒मृता॑न्। अनु॑ ॥२८॥

यजुर्वेद » अध्याय:4» मन्त्र:28


बार पढ़ा गया

हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

सब मनुष्यों को उचित है कि सब करने योग्य उत्तम कर्मों के आरम्भ, मध्य और सिद्ध होने पर परमेश्वर की प्रार्थना सदा किया करें, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) जगदीश्वर ! आप कृपा करके जिस कर्म से मैं (स्वायुषा) उत्तमतापूर्वक प्राण धारण करनेवाले (आयुषा) जीवन से (अमृतान्) जीवनमुक्त और मोक्ष को प्राप्त हुए विद्वान् वा मोक्षरूपी आनन्दों को (उदस्थाम्) अच्छे प्रकार प्राप्त होऊँ, उससे (मा) मुझको संयुक्त करके (दुश्चरितात्) दुष्टाचरण से (उद्बाधस्व) पृथक् करके (मा) मुझको (सुचरिते) उत्तम-उत्तम धर्माचरणयुक्त व्यवहार में (अन्वाभज) अच्छे प्रकार स्थापन कीजिये ॥२८॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को योग्य है कि अधर्म के छोड़ने और धर्म के ग्रहण करने के लिये सत्य प्रेम से प्रार्थना करें, क्योंकि प्रार्थना किया हुआ परमात्मा शीघ्र अधर्मों से छुड़ा कर धर्म में प्रवृत्त कर देता है, परन्तु सब मनुष्यों को यह करना अवश्य है कि जब तक जीवन है, तब तक धर्माचरण ही में रहकर संसार वा मोक्षरूपी सुखों को सब प्रकार से सेवन करें ॥२८॥
बार पढ़ा गया

संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

सर्वैर्मनुष्यैः सर्वेषु कर्त्तव्येषु शुभकर्मानुष्ठानेषु परमेश्वरः सदा प्रार्थनीय इत्युपदिश्यते ॥

अन्वय:

(परि) सर्वतः (मा) माम् (अग्ने) विज्ञानस्वरूप दयालो जगदीश्वर ! (दुश्चरितात्) दुष्टाचरणात् (बाधस्व) निवर्त्तय (आ) समन्तात् (मा) माम् (सुचरिते) यस्मिन् शोभनानि चरितानि, धर्म्ये व्यवहारे, तस्मिन् (भज) स्थापय (उत्) अपि (आयुषा) जीवनेन (स्वायुषा) शोभनमायुर्जीवनं प्राणधारणं यस्मिँस्तेन सह (उत्) उत्कृष्टे (अस्थाम्) तिष्ठेयम् (अमृतान्) प्राप्तमोक्षान् सदेहान् विगतदेहान् वा विदुषो मुक्त्यानन्दानुत्तमान् भोगान् वा (अनु) आनुकूल्ये। अयं मन्त्रः (शत०३.३.१३-१४) व्याख्यातः ॥२८॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे अग्ने जगदीश्वर ! त्वं कृपया येन कर्मणाहं स्वायुषायुषाऽमृतान् प्राप्तमोक्षान् सदेहान् विगतदेहान् वा विदुषोऽमृतात्मभोगान् वोदस्थामुत्कृष्टतया प्राप्युनाम, तेन मा मां संयोज्य दुश्चरिताद् उद्बाधस्व पृथक् कुरु, पृथक् कृत्वा मा मां सुचरितेऽन्वाभज ॥२८॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैरधर्मत्यागाय धर्मग्रहणाय सत्यभावेन प्रार्थितोऽयं परमात्मा यथैतानधर्माद् वियोज्य धर्मे सद्यः प्रवर्त्तयति, तथैव स्वैरपि यावज्जीवनं तावत्सर्वं धर्माचरणे नीत्वा संसारमुक्तिसुखानि सेवनीयानि ॥२८॥
बार पढ़ा गया

मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसांनी अधर्माचा त्याग व धर्माचा स्वीकार करण्यासाठी परमेश्वराची मनापासून खऱ्या भक्तीने प्रार्थना करावी. कारण प्रार्थना केल्यामुळे परमेश्वर अधर्मापासून परावृत्त करतो व धर्माकडे वळवितो. त्यासाठी सर्व लोकांनी जिवंत असेपर्यंत धर्मानेच वागले पाहिजे व सांसारिक किंवा मोक्षरूपी सुख भोगले पाहिजे.