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ए॒षा ते॑ शुक्र त॒नूरे॒तद्वर्च॒स्तया॒ सम्भ॑व॒ भ्राज॑ङ्गच्छ। जूर॑सि धृ॒ता मन॑सा॒ जुष्टा॒ विष्ण॑वे ॥१७॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ए॒षा। ते॒। शु॒क्र॒। त॒नूः। एतत्। वर्चः॑। तया॑। सम्। भ॒व॒। भ्राज॑म्। ग॒च्छ॒। जूः। अ॒सि॒। धृ॒ता। मन॑सा। जुष्टा॑। विष्ण॑वे ॥१७॥

यजुर्वेद » अध्याय:4» मन्त्र:17


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

इनको सेवन करके मनुष्यों को कैसे वर्त्तना चाहिये, इस विषय को उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (शुक्र) वीर्य्य पराक्रमवाले विद्वन् मनुष्य ! (ते) तेरा जो (विष्णवे) परमेश्वर वा यज्ञ के लिये (तनूः) शरीर (असि) है, तैने जिसको (धृता) धारण किया और है (तया) उससे तू (जूः) ज्ञानी वा वेगवाला होके (एतत्) इस (वर्चः) विज्ञान और तेज को (सम्भव) अच्छे प्रकार सम्पन्न कर और उससे तू (भ्राजम्) प्रकाश को (गच्छ) प्राप्त हो और (मनसा) विज्ञान से पुरुषार्थ को प्राप्त हो ॥१७॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को चाहिये कि परमेश्वर की आज्ञा का पालन करके विज्ञानयुक्त मन से शरीर वा आत्मा के आरोग्यपन को बढ़ा कर यज्ञ का अनुष्ठान करके सुखी रहें ॥१७॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

एतान् सेवित्वा मनुष्येण कथं भवितव्यमित्युपदिश्यते ॥

अन्वय:

(एषा) वक्ष्यमाणा (ते) तव (शुक्र) वीर्य्यवन् विद्वन् ! (तनूः) शरीरम् (एतत्) प्रत्यक्षम् (वर्चः) विज्ञानं तेजो वा (तया) तन्वा (सम्) सम्यगर्थे (भव) निष्पद्यस्व (भ्राजम्) प्रकाशम् (गच्छ) प्राप्नुहि (जूः) ज्ञानी वेगवान् वा (असि) भवसि (धृता) ध्रियते यया तया। अत्र कृतो बहुलम्। [अष्टा०वा०३.३.११३] इति क्विप् (मनसा) विज्ञानेन (जुष्टा) प्रीता सेविता वा (विष्णवे) परमेश्वराय यज्ञाय वा। अयं मन्त्रः (शत०३.२.४.९-११) व्याख्यातः ॥१७॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे शुक्र विद्वंस्ते तव या विष्णवे तनूरस्ति, या त्वया धृता जुष्टा च तया जूः संस्त्वमेतद्वर्चः संभव सम्यग्भावय, भ्राजं गच्छ, मनसैतेन पुरुषार्थं गच्छ प्राप्नुहि ॥१७॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैः परमेश्वराज्ञापालनेन विज्ञानयुक्तेन मनसा शरीरात्मारोग्यं वर्धित्वा यज्ञमनुष्ठाय विज्ञानयुक्तेन मनसा सुखयितव्यम् ॥१७॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसांनी परमेश्वराच्या आज्ञेचे पालन करून विज्ञानयुक्त मनाने शरीर व आत्म्याचे आरोग्य वाढवावे आणि यज्ञाचे अनुष्ठान करून सुखी व्हावे.