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दि॒ग्भ्यः स्वाहा॑ च॒न्द्राय॒ स्वाहा॒ नक्ष॑त्रेभ्यः॒ स्वाहा॒ऽद्भ्यः स्वाहा॒ वरु॑णाय॒ स्वाहा॑। नाभ्यै॒ स्वाहा॑ पू॒ताय॒ स्वाहा॑ ॥२ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

दि॒ग्भ्य इति॑ दि॒क्ऽभ्यः। स्वाहा॑। च॒न्द्राय॑। स्वाहा॑। नक्ष॑त्रेभ्यः। स्वाहा॑। अ॒द्भ्य इत्य॒त्ऽभ्यः। स्वाहा॑। वरु॑णाय। स्वाहा॑ ॥ नाभ्यै॑। स्वाहा॑। पू॒ताय॑। स्वाहा॑ ॥२ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:39» मन्त्र:2


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! तुम लोग शरीर के जलाने में (दिग्भ्यः) दिशाओं में हुतद्रव्य के पहुँचाने को (स्वाहा) सत्यक्रिया (चन्द्राय) चन्द्रलोक की प्राप्ति के लिये (स्वाहा) सत्यक्रिया (नक्षत्रेभ्यः) नक्षत्रलोकों के प्रकाश की प्राप्ति के लिये (स्वाहा) सत्यक्रिया (अद्भ्यः) जलों में चलाने के लिये (स्वाहा) सत्यक्रिया (वरुणाय) समुद्रादि में जाने के लिये (स्वाहा) सत्यक्रिया (नाभ्यै) नाभि के जलने के लिये (स्वाहा) सत्यक्रिया और (पूताय) पवित्र करने के लिये (स्वाहा) सत्यक्रिया को सम्यक् प्रयुक्त करो ॥२ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्य लोग पूर्वोक्त विधि से शरीर जलाकर सब दिशाओं में शरीर के अवयवों को अग्निद्वारा पहुँचावें ॥२ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(दिग्भ्यः) दिक्षु हुतद्रव्यस्य गमनाय (स्वाहा) (चन्द्राय) चन्द्रलोकस्य प्राप्तये (स्वाहा) (नक्षत्रेभ्यः) नक्षत्रप्रकाशप्राप्तये (स्वाहा) (अद्भ्यः) अप्सु गमनाय (स्वाहा) (वरुणाय) समुद्रादिषु गमनाय (स्वाहा) (नाभ्यै) नाभेर्दहनाय (स्वाहा) (पूताय) पवित्रकरणाय (स्वाहा) ॥२ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! यूयं शरीरस्य दाहे दिग्भ्यः स्वाहा चन्द्राय स्वाहा नक्षत्रेभ्यः स्वाहाऽद्भ्यः स्वाहा वरुणाय स्वाहा नाभ्यै स्वाहा पूताय स्वाहा सत्यां क्रियां सम्प्रयुङ्ध्वम् ॥२ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्याः पूर्वोक्तविधिना शरीरं दग्ध्वा सर्वासु दिक्षु शरीरावयवानग्निद्वारा गमयेयुः ॥२ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसांनी पूर्वोक्त विधीनुसार दाहसंस्कार करून सर्व दिशांना अग्नीद्वारे शरीराचे अवयव (सूक्ष्मरूपाने) पोहोचवावे.