आ॒या॒साय॒ स्वाहा॑ प्राया॒साय॒ स्वाहा॑ संया॒साय॒ स्वाहा॑ विया॒साय॒ स्वाहो॑द्या॒साय॒ स्वाहा॑। शु॒चे स्वाहा॒ शोच॑ते॒ स्वाहा॑ शोच॑मानाय॒ स्वाहा॒ शोका॑य॒ स्वाहा॑ ॥११ ॥
आ॒या॒सायेत्या॑ऽया॒साय॑। स्वाहा॑। प्रा॒या॒साय॑। प्र॒या॒सायेति॑ प्रऽया॒साय॑। स्वाहा॑। सं॒या॒सायेति॑ सम्ऽया॒साय॑। स्वाहा॑। वि॒या॒सायेति॑ विऽया॒साय॑। स्वाहा॑। उद्या॒सायेत्यु॑त्ऽया॒साय॑। स्वाहा॑ ॥ शु॒चे। स्वाहा॑। शोच॑ते। स्वाहा॑। शोच॑मानाय। स्वाहा॑। शोका॑य। स्वाहा॑ ॥११ ॥
हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर मनुष्यों को जन्मान्तर में सुख के लिये क्या कर्त्तव्य है, उस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥
संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनर्मनुष्यैर्जन्मान्तरे सुखार्थं किं कर्त्तव्यमित्याह ॥
(आयासाय) समन्तात् प्रापणाय (स्वाहा) (प्रायासाय) प्रयाणाय (स्वाहा) (संयासाय) सम्यग्गमनाय (स्वाहा) (वियासाय) विविधप्राप्तये (स्वाहा) (उद्यासाय) ऊर्ध्वं गमनाय (स्वाहा) (शुचे) पवित्राय (स्वाहा) (शोचते) शुद्धिकर्त्रे (स्वाहा) (शोचमानाय) विचारप्रकाशाय (स्वाहा) (शोकाय) शोचन्ति यस्मिँस्तस्मै (स्वाहा) ॥११ ॥