या ते॑ घर्म दि॒व्या शुग्या गा॑य॒त्र्या ह॑वि॒र्धाने॑। सा त॒ऽ आ प्या॑यता॒न्निष्ट्या॑यतां॒ तस्यै॑ ते॒ स्वाहा॑। या ते॑ घर्मा॒न्तरि॑क्षे॒ शुग्या त्रि॒ष्टुभ्याग्नी॑ध्रे। सा त॒ऽ आ प्या॑यता॒न्निष्ट्या॑यतां॒ तस्यै॑ ते॒ स्वाहा॑। या ते॑ घर्म पृथि॒व्या शुग्या जग॑त्या सद॒स्या᳖। सा त॒ऽ आ प्या॑यता॒न्निष्ट्या॑यतां॒ तस्यै॑ ते॒ स्वाहा॑ ॥१८ ॥
या। ते॒। घ॒र्म॒। दि॒व्या। शुक्। या। गा॒य॒त्र्याम्। ह॒वि॒र्धान॒ इति॑ हविः॒ऽधाने॑। सा। ते॒। आ। प्या॒य॒ता॒म्। निः। स्त्या॒य॒ता॒म्। तस्यै॑। ते॒। स्वाहा॑। या। ते॒। घ॒र्म॒। अ॒न्तरि॑क्षे। शुक्। या। त्रि॒ष्टुभि॑। त्रि॒स्तुभीति॑ त्रि॒ऽस्तुभि॑। आग्नी॑ध्रे ॥ सा। ते॒। आ। प्या॒य॒ता॒म्। निः। स्त्या॒य॒ता॒म्। तस्यै॑। ते॒। स्वाहा॑। या। ते॒। घ॒र्म॒। पृ॒थि॒व्याम्। शुक्। या। जग॑त्याम्। स॒द॒स्या᳖। सा। ते॒। आ। प्या॒य॒ता॒म्। निः। स्त्या॒य॒ता॒म्। तस्यै॑। ते॒। स्वाहा॑ ॥१८ ॥
हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर स्त्री-पुरुष क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥
संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनः स्त्रीपुरुषाः किं कुर्युरित्याह ॥
(या) (ते) (घर्म) प्रकाशात्मन् (दिव्या) दिव्येषु गुणेषु भवा (शुक्) शोचन्ति विचारयन्ति यया सा (या) (गायत्र्याम्) गायतो रक्षिकायां विद्यायाम् (हविर्धाने) हविषां धारणे (सा) (ते) तव (आ) (प्यायताम्) सर्वतो वर्द्धताम् (निः) नितराम् (स्त्यायताम्) संहता भवन्तु। अत्र व्यत्ययेनात्मनेपदम्। (तस्यै) (ते) तुभ्यम् (स्वाहा) प्रशंसिता वाक् (या) (ते) तव (घर्म) दिनमिव विशालविद्या (अन्तरिक्षे) आकाशे (शुक्) सूर्य्यस्येव प्रदीप्तिः (या) (त्रिष्टुभि) त्रिष्टुब् निर्मितेऽर्थे (आग्नीध्रे) अग्नीधः शरणे (सा) (ते) तव (आ) (प्यायताम्) (निः) (स्त्यायताम्) (तस्यै) (ते) (स्वाहा) (या) (ते) तव (घर्म) विद्युतः प्रकाश इव वर्त्तमान (पृथिव्याम्) भूमौ (शुक्) प्रदीप्तिः (या) (जगत्याम्) जगदन्वितायां सृष्टौ (सदस्या) सदसि सभायां भवा (सा) (ते) तव (आ) (प्यायताम्) (निः) (स्त्यायताम्) (तस्यै) (ते) (स्वाहा) सत्यविद्या ॥१८ ॥