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या ते॑ घर्म दि॒व्या शुग्या गा॑य॒त्र्या ह॑वि॒र्धाने॑। सा त॒ऽ आ प्या॑यता॒न्निष्ट्या॑यतां॒ तस्यै॑ ते॒ स्वाहा॑। या ते॑ घर्मा॒न्तरि॑क्षे॒ शुग्या त्रि॒ष्टुभ्याग्नी॑ध्रे। सा त॒ऽ आ प्या॑यता॒न्निष्ट्या॑यतां॒ तस्यै॑ ते॒ स्वाहा॑। या ते॑ घर्म पृथि॒व्या शुग्या जग॑त्या सद॒स्या᳖। सा त॒ऽ आ प्या॑यता॒न्निष्ट्या॑यतां॒ तस्यै॑ ते॒ स्वाहा॑ ॥१८ ॥

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पद पाठ

या। ते॒। घ॒र्म॒। दि॒व्या। शुक्। या। गा॒य॒त्र्याम्। ह॒वि॒र्धान॒ इति॑ हविः॒ऽधाने॑। सा। ते॒। आ। प्या॒य॒ता॒म्। निः। स्त्या॒य॒ता॒म्। तस्यै॑। ते॒। स्वाहा॑। या। ते॒। घ॒र्म॒। अ॒न्तरि॑क्षे। शुक्। या। त्रि॒ष्टुभि॑। त्रि॒स्तुभीति॑ त्रि॒ऽस्तुभि॑। आग्नी॑ध्रे ॥ सा। ते॒। आ। प्या॒य॒ता॒म्। निः। स्त्या॒य॒ता॒म्। तस्यै॑। ते॒। स्वाहा॑। या। ते॒। घ॒र्म॒। पृ॒थि॒व्याम्। शुक्। या। जग॑त्याम्। स॒द॒स्या᳖। सा। ते॒। आ। प्या॒य॒ता॒म्। निः। स्त्या॒य॒ता॒म्। तस्यै॑। ते॒। स्वाहा॑ ॥१८ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:38» मन्त्र:18


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर स्त्री-पुरुष क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (घर्म) प्रकाशस्वरूप विद्वन् ! वा विदुषी स्त्रि ! (या) जो (ते) तेरी (गायत्र्याम्) पढ़नेवालों की रक्षक विद्या और (हविर्धाने) होमने योग्य पदार्थों के धारण में (शुक्) विचार की साधनरूप क्रिया और (या) जो (दिव्या) दिव्य गुणों में हुई क्रिया है (सा) वह (ते) तेरी (आ, प्यायताम्) सब ओर से बढ़े और (निः, स्त्यायताम्) निरन्तर संयुक्त होवे (तस्यै) उस क्रिया और (ते) तेरे लिये (स्वाहा) प्रशस्त वाणी होवे। हे (घर्म) दिन के तुल्य प्रकाशित विद्यावाले जन वा स्त्रि ! (या) जो (ते) तेरी (अन्तरिक्षे) आकाश विषय में (शुक्) सूर्य्य की दीप्ति के समान विमानादि की गमन क्रिया और (या) जो (आग्नीध्रे) अग्नि के आश्रय में तथा (त्रिष्टुभि) त्रिष्टुप् छन्द से निकले अर्थ में विचाररूप क्रिया है (सा) वह (ते) तेरी (आ, प्यायताम्) बढ़े और (निः, स्त्यायताम्) निरन्तर संयुक्त होवे (तस्यै) उस क्रिया और (ते) तेरे लिये (स्वाहा) सत्यवाणी होवे। हे (घर्म) बिजुली के प्रकाश के तुल्य वर्त्तमान स्त्रि वा पुरुष ! (या) जो (ते) तेरी (पृथिव्याम्) भूमि पर और (या) जो (सदस्या) सभा में हुई (जगत्याम्) चेतन प्रजायुक्त सृष्टि में (शुक्) प्रकाशयुक्त क्रिया है, (सा) वह (ते) तेरी (आ, प्यायताम्) बढ़े और (निः, स्त्यायताम्) निरन्तर सम्बद्ध होवे (तस्यै) उस क्रिया तथा (ते) तेरे लिये (स्वाहा) सत्यवाणी होवे ॥१८ ॥
भावार्थभाषाः - जो स्त्री-पुरुष दिव्य क्रिया, शुद्ध उपासना और पवित्र विज्ञान को पाकर प्रकाशित हाते हैं, वे ही मनुष्यजन्म के फल से युक्त होते हैं, औरों को भी वैसा ही करें ॥१८ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः स्त्रीपुरुषाः किं कुर्युरित्याह ॥

अन्वय:

(या) (ते) (घर्म) प्रकाशात्मन् (दिव्या) दिव्येषु गुणेषु भवा (शुक्) शोचन्ति विचारयन्ति यया सा (या) (गायत्र्याम्) गायतो रक्षिकायां विद्यायाम् (हविर्धाने) हविषां धारणे (सा) (ते) तव (आ) (प्यायताम्) सर्वतो वर्द्धताम् (निः) नितराम् (स्त्यायताम्) संहता भवन्तु। अत्र व्यत्ययेनात्मनेपदम्। (तस्यै) (ते) तुभ्यम् (स्वाहा) प्रशंसिता वाक् (या) (ते) तव (घर्म) दिनमिव विशालविद्या (अन्तरिक्षे) आकाशे (शुक्) सूर्य्यस्येव प्रदीप्तिः (या) (त्रिष्टुभि) त्रिष्टुब् निर्मितेऽर्थे (आग्नीध्रे) अग्नीधः शरणे (सा) (ते) तव (आ) (प्यायताम्) (निः) (स्त्यायताम्) (तस्यै) (ते) (स्वाहा) (या) (ते) तव (घर्म) विद्युतः प्रकाश इव वर्त्तमान (पृथिव्याम्) भूमौ (शुक्) प्रदीप्तिः (या) (जगत्याम्) जगदन्वितायां सृष्टौ (सदस्या) सदसि सभायां भवा (सा) (ते) तव (आ) (प्यायताम्) (निः) (स्त्यायताम्) (तस्यै) (ते) (स्वाहा) सत्यविद्या ॥१८ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे घर्म विद्वन् ! विदुषि वा ! या ते गायत्र्यां हविर्धाने शुग्या च दिव्या वर्त्तते, सा त आप्यायतां निष्ट्यायतां तस्यै ते स्वाहा स्यात्। हे घर्म ! या तेऽन्तरिक्षे शुग्या आग्नीध्रे त्रिष्टुभि शुगस्ति, सा त आप्यायतां निष्ट्यायतां तस्यै ते स्वाहा। हे घर्म ! या ते पृथिव्यां या सदस्या जगत्यां शुगस्ति, सा त आप्यायतां निष्ट्यायतां तस्यै ते स्वाहा भवतु ॥१८ ॥
भावार्थभाषाः - ये स्त्रीपुरुषा दिव्यां क्रियां शुद्धामुपासनां पवित्रं विज्ञानं च प्राप्य प्रकाशन्ते, त एव मनुष्यजन्मफलापन्ना भवन्ति, अन्यानपि तथैव कुर्युः ॥१८ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे स्री-पुरुष दिव्य कर्म, शुद्ध उपासना व पवित्र विज्ञान प्राप्त करून तेजस्वी बनतात. त्यांचाच मनुष्य जन्म सफल होतो. त्यामुळे इतरांनीही त्याप्रमाणे वागावे.