म॒खस्य॒ शिरो॑ऽसि। म॒खाय॑ त्वा म॒खस्य॑ त्वा शी॒र्ष्णे। म॒खस्य॒ शिरो॑ऽसि। म॒खाय॑ त्वा म॒खस्य॑ त्वा शी॒र्ष्णे। म॒खस्य॒ शिरो॑ऽसि। म॒खाय॑ त्वा म॒खस्य॑ त्वा शी॒र्ष्णे। म॒खाय॑ त्वा म॒खस्य॑ त्वा शी॒र्ष्णे। म॒खाय॑ त्वा म॒खस्य॑ त्वा शी॒र्ष्णे। म॒खाय॑ त्वा म॒खस्य॑ त्वा शी॒र्ष्णे ॥८ ॥
म॒खस्य॑। शिरः॑। अ॒सि॒। म॒खाय॑। त्वा॒। म॒खस्य॑। त्वा॒। शी॒र्ष्णे। म॒खस्य॑। शिरः॑। अ॒सि॒। म॒खाय॑। त्वा॒। म॒खस्य॑। त्वा॒। शी॒र्ष्णे। म॒खस्य॑। शिरः॑। अ॒सि॒। म॒खाय॑। त्वा॒। म॒खस्य॑। त्वा॒। शी॒र्ष्णे। म॒खाय॑। त्वा॒। म॒खस्य॑। त्वा॒। शी॒र्ष्णे। म॒खाय॑। त्वा॒। म॒खस्य॑। त्वा॒। शी॒र्ष्णे। म॒खाय॑। त्वा॒। म॒खस्य॑। त्वा॒। शी॒र्ष्णे। ॥८ ॥
हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
मनुष्य लोग विद्वान् के साथ कैसे वर्तें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥
संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
मनुष्या विदुषा सह कथं वर्तेरन्नित्याह ॥
(मखस्य) ब्रह्मचर्याख्यस्य (शिरः) मूर्द्धेव (असि) (मखाय) विद्याग्रहणानुष्ठानाय (त्वा) (मखस्य) ज्ञानस्य (त्वा) (शीर्ष्णे) उत्तमव्यवहाराय (मखस्य) मननाख्यस्य (शिरः) उत्तमाङ्गवत् (असि) (मखाय) गार्हस्थ्यव्यवहाराय (त्वा) (मखस्य) (त्वा) (शीर्ष्णे) (मखस्य) गृहस्य (शिरः) शिरोवत् (असि) (मखाय) गृहस्थकार्यसङ्गतिकरणाय (त्वा) (मखस्य) (त्वा) (शीर्ष्णे) (मखाय) (त्वा) (मखस्य) सद्व्यवहारसिद्धेः (त्वा) (शीर्ष्णे) शिरोवद्वर्त्तमानाय (मखाय) योगाभ्यासाय (त्वा) (मखस्य) साङ्गोपाङ्गस्य योगस्य (त्वा) (शीर्ष्णे) शिरोवत् सर्वोपरि वर्त्तमानाय (मखाय) ऐश्वर्य्यप्रदाय (त्वा) त्वाम् (मखस्य) ऐश्वर्य्यप्रदस्य (त्वा) (शीर्ष्णे) सर्वोत्कर्षाय ॥८ ॥