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अहः॑ के॒तुना॑ जुषता सु॒ज्योति॒र्ज्योति॑षा॒ स्वाहा॑। रात्रिः॑ के॒तुना॑ जुषता सु॒ज्योति॒र्ज्योति॑षा॒ स्वाहा॑ ॥२१ ॥

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पद पाठ

अह॒रित्यहः॑। के॒तुना॑। जु॒ष॒ता॒म्। सु॒ज्योति॒रिति॑ सु॒ऽज्योतिः॑। ज्योति॑षा। स्वाहा॑ ॥ रात्रिः॑। के॒तुना॑। जु॒ष॒ता॒म्। सु॒ज्योति॒रिति॑ सु॒ऽज्योतिः॑। ज्योति॑षा। स्वाहा॑ ॥२१ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:37» मन्त्र:21


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् वा विदुषी स्त्रि ! आप (स्वाहा) सत्य क्रिया से (केतुना) उत्कट ज्ञान वा जागृत अवस्था से और (ज्योतिषा) सूर्य्यादि वा धर्मादि के प्रकाश से (अहः, सुज्योतिः) दिन और विद्या को (जुषताम्) सेवन कीजिये (स्वाहा) सत्य वाणी (केतुना) बुद्धि वा सुन्दर कर्म और (ज्योतिषा) प्रकाश के साथ (सुज्योतिः) सुन्दर ज्योतियुक्त (रात्रिः) रात्रि हमको (जुषताम्) सेवन करे ॥२१ ॥
भावार्थभाषाः - जो स्त्री-पुरुष दिन के सोने और रात्रि के अति जागने को छोड़ युक्त आहार-विहार करनेहारे ईश्वर की उपासना में तत्पर होवें, उनको दिन-रात सुखकर वस्तु प्राप्त होती है। इससे जैसे बुद्धि बढ़े, वैसा अनुष्ठान करना चाहिये ॥२१ ॥ इस अध्याय में ईश्वर, योगी, सूर्य्य, पृथिवी, यज्ञ, सन्मार्ग, स्त्री, पति और पिता के तुल्य वर्त्तमान परमेश्वर का वर्णन तथा युक्त आहार-विहार का अनुष्ठान कहा है, इससे इस अध्याय में कहे अर्थ की पूर्व अध्याय में कहे अर्थ के साथ संगति जाननी चाहिये ॥ इति श्रीमत्परमहंसपरिव्राजकाचार्याणां श्रीमन्महाविदुषां श्रीविरजानन्दसरस्वतीस्वामिनां शिष्येण श्रीमत्परमहंसपरिव्राजकाचार्येण श्रीमद्दयानन्दसरस्वतीस्वामिना विरचिते संस्कृतार्य्यभाषाभ्यां विभूषिते सुप्रमाणयुक्ते यजुर्वेदभाष्ये सप्तत्रिंशोऽध्यायः पूर्त्तिमगात् ॥३७॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(अहः) दिनम् (केतुना) जागरूकेण ज्ञानेन जागृतावस्थया (जुषताम्) सेवताम् (सुज्योतिः) विद्याप्रकाशम् (ज्योतिषा) सूर्यादिप्रकाशेन वा धर्मादिप्रकाशेन (स्वाहा) सत्यया क्रियया (रात्रिः) (केतुना) प्रज्ञया सुकर्मणा वा (जुषताम्) (सुज्योतिः) (ज्योतिषा) प्रकाशेन सह (स्वाहा) सत्यया वाचा ॥२१ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् विदुषि स्त्रि वा ! भवती स्वाहा केतुना ज्योतिषा चाहः सुज्योतिर्जुषतां स्वाहा केतुना ज्योतिषा सह सुज्योती रात्रिरस्मान् जुषताम् ॥२१ ॥
भावार्थभाषाः - ये स्त्रीपुरुषा दिवास्वापं रात्रावतिजागरणं विहाय युक्ताहारविहारा ईश्वरोपासनतत्परा भवेयुस्तानहर्निशं सुखकरं वस्तु प्राप्नोति। अतो यथा प्रज्ञा वर्द्धेत तथानुष्ठातव्यमिति ॥२१ ॥ अत्रेश्वरस्य योगिनः सूर्य्यपृथिव्योर्यज्ञस्य सन्मार्गस्य स्त्रीपत्योः पितृवद्वर्त्तमानस्य परमेश्वरस्य च वर्णनं युक्ताहारविहारस्य चानुष्ठानमुक्तमत एतदर्थस्य पूर्वाध्यायेन सह सङ्गतिरस्तीति वेद्यम् ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे स्री, पुरुष दिवसा झोपणे व रात्री जागरण करणे या गोष्टी टाळून युक्त आहार, विहार करतात व ईश्वराची उपासना करण्यात तत्पर असतात. त्यांचे दिवस व रात्र सुखकारक होतात. त्यासाठी बुद्धीत वाढ होईल असे अनुष्ठान करावे.