बार पढ़ा गया
हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! आप (मरुद्भिः) मनुष्यों के साथ (स्वाहा) सत्क्रिया (मधु) कर्म (मधु) उपासना और (मधु) विज्ञान का (श्रीयस्व) सेवन कीजिये तथा (संस्पृशः) सम्यक् स्पर्श करनेवाली (दिवः) प्रकाशरूप बिजुली से हमारी (परि, पाहि) सब ओर से रक्षा कीजिये ॥१३ ॥
भावार्थभाषाः - जो लोग पूर्ण विद्वानों के साथ कर्म, उपासना और ज्ञान की विद्या तथा उत्तम क्रिया को ग्रहण कर सेवन करते हैं, वे सब ओर से रक्षा को प्राप्त हुए बड़े ऐश्वर्य को प्राप्त होते हैं ॥१३ ॥
बार पढ़ा गया
संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
अन्वय:
(स्वाहा) सत्यां क्रियाम् (मरुद्भिः) मनुष्यैः सह (परि) सर्वतः (श्रीयस्व) सेवस्व। अत्र विकरणव्यत्ययेन श्यन्। (दिवः) प्रकाशाद् विद्युतः (संस्पृशः) यः संस्पृशति तस्मात् (पाहि) (मधु) कर्म (मधु) उपासनम् (मधु) विज्ञानम् ॥१३ ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वँस्त्वं मरुद्भिः स्वाहा मधु मधु मधु श्रीयस्व, संस्पृशो दिवोऽस्मान् परि पाहि ॥१३ ॥
भावार्थभाषाः - ये पूर्णैर्विद्वद्भिः सह कर्मोपासनाज्ञानविद्यां सत्क्रियां च गृहीत्वा सेवन्ते, ते सर्वतो रक्षिताः सन्तो महदैश्वर्यं प्राप्नुवन्ति ॥१३ ॥
बार पढ़ा गया
मराठी - माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे लोक पूर्ण विद्वानांकडून ज्ञान, कर्म, उपासना करण्याची विद्या व क्रिया जाणतात. त्यांचे सर्व प्रकारे रक्षण होऊन त्यांना आत्यंतिक ऐश्वर्य प्राप्त होते.