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य॒माय॑ त्वा म॒खाय॑ त्वा॒ सूर्य्य॑स्य त्वा॒ तप॑से। दे॒वस्त्वा॑ सवि॒ता मध्वा॑नक्तु पृथि॒व्याः सꣳस्पृश॑स्पाहि। अ॒र्चिर॑सि शो॒चिर॑सि॒ तपो॑ऽसि ॥११ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

य॒माय॑। त्वा॒। म॒खाय॑। त्वा॒। सूर्य्य॑स्य। त्वा॒। तप॑से। दे॒वः। त्वा॒। स॒वि॒ता। मध्वा॑। अ॒न॒क्तु॒। पृ॒थि॒व्याः। स॒ꣳस्पृश॒ इति॑ स॒म्ऽस्पृशः॑। पा॒हि॒। अ॒र्चिः। अ॒सि॒। शो॒चिः। अ॒सि॒। तपः॑। अ॒सि॒ ॥११ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:37» मन्त्र:11


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब सज्जन कैसे होते हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! (सविता) ऐश्वर्य्यकर्त्ता (देवः) दानशील पुरुष (मखाय) न्याय के अनुष्ठान के लिये (यमाय) नियम के अर्थ (त्वा) आपको (सूर्यस्य) प्रेरक ईश्वरसम्बन्धी (तपसे) धर्म के अनुष्ठान के लिये (त्वा) आपको ग्रहण करे। (पृथिव्याः) भूमिसम्बन्धी (त्वा) आपको (मध्वा) मधुरता से (अनक्तु) संयुक्त करे सो आप (संस्पृशः) सम्यक् स्पर्श से (पाहि) रक्षा कीजिये, जिस कारण आप (अर्चिः) तेजस्वी (असि) हैं, (शोचिः) अग्नि की लपट के तुल्य पवित्र (असि) हैं और (तपः) धर्म में श्रम करनेहारे (असि) हैं, इससे (त्वा) आपका सत्कार करें ॥११ ॥
भावार्थभाषाः - जो लोग यथार्थ व्यवहार से प्रकाशित कीर्तिवाले होते हैं, वे दुःख के स्पर्श से अलग होकर तेजस्वी होते हैं और दुष्टों को दुःख देकर श्रेष्ठों को सुखी करते हैं ॥११ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ सज्जनाः कीदृशा भवन्तीत्याह ॥

अन्वय:

(यमाय) (त्वा) त्वाम् (मखाय) न्यायानुष्ठानाय (त्वा) (सूर्यस्य) प्रेरकस्येश्वरस्य (त्वा) (तपसे) धर्मानुष्ठानाय (देवः) दाता (त्वा) (सविता) ऐश्वर्यकर्त्ता (मध्वा) मधुरेण (अनक्तु) संयुनक्तु (पृथिव्याः) भूमेः (संस्पृशः) सम्यक् स्पर्शात् (पाहि) (अर्चिः) प्रदीप्तिः (असि) (शोचिः) शोचिरिव पवित्रः (असि) (तपः) धर्मे श्रमकर्त्ता (असि) ॥११ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! सविता देवो मखाय यमाय त्वा सूर्यस्य तपसे त्वा गृह्णातु, पृथिव्यास्त्वा मध्वाऽनक्तु, स त्वं संस्पृशः पाहि, यतस्त्वमर्चिरसि शोचिरसि तपोऽसि तस्मात् त्वा सत्कुर्य्याम ॥११ ॥
भावार्थभाषाः - ये न्यायव्यवहारेण प्रदीप्तयशसो भवन्ति, ते दुःखस्पर्शात् पृथग् भूत्वा तेजस्विनो भवन्ति, दुष्टान् परिताप्य श्रेष्ठान् सुखयन्ति च ॥११ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे लोक यथार्थ व्यवहार करतात ते कीर्तितान होतात. त्यांना दुःखाचा स्पर्शही होत नाही उलट ते तेजस्वी बनतात. दुष्टांना दुःख देऊन ते श्रेष्ठांना सुखी करतात.