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ऋ॒जवे॑ त्वा सा॒धवे॑ त्वा सुक्षि॒त्यै त्वा॑। म॒खाय॑ त्वा म॒खस्य॑ त्वा शी॒र्ष्णे। म॒खाय॑ त्वा म॒खस्य॑ त्वा शी॒र्ष्णे। म॒खाय॑ त्वा म॒खस्य॑ त्वा शी॒र्ष्णे ॥१० ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ऋ॒जवे॑ त्वा॒। सा॒धवे॑। त्वा॒। सु॒क्षि॒त्याऽइति॑ सुक्षि॒त्यै। त्वा॒। म॒खाय॑। त्वा॒। म॒खस्य॑। त्वा॒। शी॒र्ष्णे। म॒खाय॑। त्वा॒। म॒खस्य॑। त्वा॒। शी॒र्ष्णे। म॒खाय॑। त्वा॒। म॒खस्य॑। त्वा॒। शी॒र्ष्णे ॥१० ॥

यजुर्वेद » अध्याय:37» मन्त्र:10


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

कौन बड़े राज्य को प्राप्त होते हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! (ऋजवे) सरल स्वभाववाले (त्वा) आपको (मखाय) विद्वानों के सत्कार के लिये (त्वा) आपको (मखस्य) यज्ञ के (शीर्ष्णे) उत्तम अवयव के लिये (त्वा) आपको (साधवे) परोपकार को सिद्ध करनेवाले के लिये (त्वा) आपको (मखाय) यज्ञ के लिये (त्वा) आपको (मखस्य) यज्ञ के (शीर्ष्णे) शिर के लिये (त्वा) आपको (सुक्षित्यै) उत्तम भूमि के लिये (त्वा) आपको (मखाय) यज्ञ के लिये (त्वा) आपको (मखस्य) यज्ञ के (शीर्ष्णे) उत्तम अवयव के लिये (त्वा) आपको हम लोग स्थापित करते हैं ॥१० ॥
भावार्थभाषाः - जो लोग विनय ओर सीधेपन से युक्त प्रयत्न के साथ सर्वोपकाररूप यज्ञ को सिद्ध करते हैं, वे बड़े राज्य को प्राप्त होते हैं ॥१० ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

के महद्राज्यं प्राप्नुवन्तीत्याह ॥

अन्वय:

(ऋजवे) सरलाय (त्वा) त्वाम् (साधवे) परोपकारसाधकाय (त्वा) (सुक्षित्यै) उत्तमायै भूम्यै (त्वा) (मखाय) विदुषां सत्काराय (त्वा) (मखस्य) यज्ञस्य (त्वा) (शीर्ष्णे) (मखाय) (त्वा) (मखस्य) (त्वा) (शीर्ष्णे) (मखाय) (त्वा) (मखस्य) (त्वा) (शीर्ष्णे) ॥१० ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! ऋजवे त्वा मखाय त्वा मखस्य शीर्ष्णे त्वा साधवे त्वा मखाय त्वा मखस्य शीर्ष्णे त्वा सुक्षित्यै त्वा मखाय त्वा मखस्य शीर्ष्णे त्वा वयं स्थापयामः ॥१० ॥
भावार्थभाषाः - ये विनयसाधुत्वाभ्यां युक्ताः प्रयत्नेन सर्वोपकाराख्यं यज्ञं साध्नुवन्ति, ते महद्राज्यमाप्नुवन्ति ॥१० ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे लोक विनयाने व सरळपणाने प्रयत्नपूर्वक सर्वांवर उपकार करतात ते जणू यज्ञ करतात. त्यांना मोठे राज्य मिळते.