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दे॒वस्य॑ त्वा सवि॒तुः प्र॑स॒वे᳕ऽश्विनो॑र्बा॒हुभ्यां॑ पू॒ष्णो हस्ता॑भ्याम्। आ द॑दे॒ नारि॑रसि ॥१ ॥

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पद पाठ

दे॒वस्य॑। त्वा॒। स॒वि॒तुः। प्र॒स॒व इति॑ प्रऽस॒वे। अ॒श्विनोः॑। बा॒हुभ्या॒मिति॑ बा॒हुभ्या॑म्। पूष्णः॑। हस्ता॑भ्याम्। आ। द॒दे॒। नारिः॑। अ॒सि॒ ॥१ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:37» मन्त्र:1


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब सैंतीसवें अध्याय का आरम्भ किया जाता है। इसके पहिले मन्त्र में मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! जिस कारण आप (नारिः) नायक (असि) हैं, इससे (सवितुः) जगत् के उत्पादक (देवस्य) समस्त सुख के दाता (प्रसवे) उत्पन्न हुए जगत् में (अश्विनोः) अध्यापक और उपदेशक के (बाहुभ्याम्) बल पराक्रम से (पूष्णः) पुष्टिकर्त्ता जन के (हस्ताभ्याम्) हाथों से (त्वा) आपको (आ, ददे) अच्छे प्रकार ग्रहण करता हूँ ॥१ ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! तुम लोग उत्तम विद्वानों को प्राप्त होके उनसे विद्या, शिक्षा ग्रहण कर इस सृष्टि में नायक होओ ॥१ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

अन्वय:

(देवस्य) सकलसुखप्रदातुः (त्वा) त्वाम् (सवितुः) जगदुत्पादकस्य (प्रसवे) उत्पन्ने जगति (अश्विनोः) अध्यापकोपदेशकयोः (बाहुभ्याम्) बलवीर्य्याभ्याम् (पूष्णः) पोषकस्य (हस्ताभ्याम्) कराभ्याम् (आ) (ददे) समन्ताद् गृह्णामि (नारिः) नायकः (असि) ॥१ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! यतस्त्वं नारिरसि तस्मात् सवितुर्देवस्य प्रसवेऽश्विनोर्बाहुभ्यां पूष्णो हस्ताभ्यां त्वाऽऽददे ॥१ ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्याः ! यूयं विद्वद्वरान् प्राप्य संसेव्यैतेभ्यो विद्याशिक्षे गृहीत्वाऽत्र सृष्टौ नायका भवत ॥१ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! तुम्ही उत्तम विद्वानांकडून विद्या व शिक्षण प्राप्त करा. कारण तुम्ही या सृष्टीचे मुख्य (नायक) आहात.