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नम॑स्तेऽअस्तु वि॒द्युते॒ नम॑स्ते स्तनयि॒त्नवे॑। नम॑स्ते भगवन्नस्तु॒ यतः॒ स्वः᳖ स॒मीह॑से ॥२१ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

नमः॑ ते। अ॒स्तु॒। वि॒द्युत॒ इति॑ वि॒ऽद्युते॑। नमः॑। ते॒। स्त॒न॒यि॒त्नवे॑ ॥ नमः॑। ते॒। भ॒ग॒व॒न्निति॑ भगऽवन्। अ॒स्तु॒। यतः॑। स्व᳖रिति॒ स्वः᳖। स॒मीह॑स॒ इति॑ स॒म्ऽईह॑से। ॥२१ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:36» मन्त्र:21


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (भगवन्) अनन्त ऐश्वर्ययुक्त परमेश्वर ! (यतः) जिस कारण आप हमारे लिये (स्वः) सुख देने के अर्थ (समीहसे) सम्यक् चेष्टा करते हैं, इससे (विद्युते) बिजुली के समान अभिव्याप्त (ते) आपके लिये (नमः) नमस्कार (अस्तु) हो, (स्तनयित्नवे) अधिकतर गर्जनेवाले विद्युत् के तुल्य दुष्टों को भय देनेवाले (ते) आपके लिये (नमः) नमस्कार (अस्तु) हो और सबकी सब प्रकार रक्षा करनेहारे (ते) तेरे लिये (नमः) निरन्तर नमस्कार करें ॥२१ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। मनुष्यो ! जिस कारण ईश्वर हमारे लिये सदा आनन्द के अर्थ सब साधन-उपसाधनों को देता है, इससे हमको सेवा करने योग्य है ॥२१ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(नमः) (ते) तुभ्यं परमेश्वराय (अस्तु) (विद्युते) विद्युदिवाऽभिव्याप्ताय (नमः) (ते) (स्तनयित्नवे) स्तनयित्नुरिव दुष्टानां भयङ्कराय (नमः) (ते) (भगवन्) अत्यन्तैश्वर्य्यसम्पन्न (अस्तु) (यतः) (स्वः) सुखदानाय (समीहसे) सम्यक् चेष्टसे ॥२१ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे भगवन् ! यतस्त्वमस्मभ्यं स्वः समीहसे तस्माद्विद्युते ते नमोऽस्तु, स्तनयित्नवे ते नमोऽस्तु, सर्वाभिरक्षकाय ते नमश्च सततं कुर्य्याम ॥२१ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्याः ! यस्मादीश्वरोऽस्मभ्यं सदाऽऽनन्दाय सर्वाणि साधनोपसाधनानि प्रयच्छति, तस्मादयमस्माभिः सेव्योऽस्ति ॥२१ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! जो ईश्वर सर्वत्र व्याप्त असतो (विद्युतप्रमाणे आपल्या गर्जनेने दुष्टांना भयभीत करतो) व सर्व माणसांच्या सुखासाठी साधने व उपसाधने देतो तोच नमस्कार करण्यायोग्य आहे.