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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे श्रेष्ठ स्त्रियो ! (यः) जो (वः) तुम्हारा (शिवतमः) अतिशय कल्याणकारी (रसः) आनन्दवर्द्धक स्नेहरूप रस है (तस्य) उसका (इह) इस जगत् में (नः) हमको (उशतीरिव, मातरः) पुत्रों की कामना करनेवाली माताओं के तुल्य (भाजयत) सेवा कराओ ॥१५ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जो होम आदि से जल शुद्ध किये जावें तो ये माता जैसे सन्तानों वा पतिव्रता स्त्रियाँ अपने पतियों को सुखी करती हैं, वैसे सब प्राणियों को सुखी करते हैं ॥१५ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
अन्वय:
(यः) (वः) युष्माकम् (शिवतमः) अतिशयेन कल्याणकरः (रसः) आनन्दवर्द्धकः स्नेहरूपः (तस्य) रसम्। अत्र कर्मणि षष्ठी। (भाजयत) सेवयत (इह) अस्मिञ्जगति (नः) अस्मान् (उशतीरिव) कामयमाना इव। अत्र वाच्छन्दसि ॥ (अष्टा०६.१.१०२) इति पूर्वसवर्णादेशः। (मातरः) ॥१५ ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे सत्स्त्रियो ! यो वः शिवतमो रसोऽस्ति तस्येह नो मातरः पुत्रानुशतीरिव भाजयत ॥१५ ॥
भावार्थभाषाः - यदि होमादिनाऽऽपः शुद्धाः क्रियेरँस्तर्ह्येता मातरोऽपत्यानीव पतिव्रता पतीनिव सर्वान् प्राणिनस्सुखयन्ति ॥१५ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जसे माता आपल्या संतानांना किंवा पतिव्रता स्रिया आपल्या पतींना सुखी करतात तसे जे लोक होम वगैरे करून जलशुद्धी करतात ते सर्व प्राण्यांना सुखी करतात.