ऋचं॒ वाचं॒ प्र प॑द्ये॒ मनो॒ यजुः॒ प्र प॑द्ये॒ साम॑ प्रा॒णं प्र प॑द्ये॒ चक्षुः॒ श्रोत्रं॒ प्र प॑द्ये। वागोजः॑ स॒हौजो॒ मयि॑ प्राणापा॒नौ ॥१ ॥
ऋच॑म्। वाच॑म्। प्र। प॒द्ये॒। मनः॑। यजुः॑। प्र। प॒द्ये॒। साम॑। प्रा॒णम्। प्र। प॒द्ये॒। चक्षुः॑। श्रोत्र॑म्। प्र। प॒द्ये॒ ॥ वाक्। ओजः॑। स॒ह। ओजः॑। मयि॑। प्रा॒णा॒पा॒नौ ॥१ ॥
हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब छत्तीसवें अध्याय का आरम्भ किया जाता है, इसके प्रथम मन्त्र में विद्वानों के सङ्ग से क्या होता है, इस विषय को कहते हैं ॥
संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथ विद्वत्सङ्गेन किञ्जायत इत्याह ॥
(ऋचम्) प्रशंसनीयमृग्वेदम् (वाचम्) वाणीम् (प्र) (पद्ये) प्राप्नुयाम् (मनः) मननात्मकं चित्तम् (यजुः) यजुर्वेदम् (प्र) (पद्ये) (साम) सामवेदम् (प्राणम्) (प्र) (पद्ये) (चक्षुः) चष्टे पश्यति येन तत् (श्रोत्रम्) शृणोति येन तत् (प्र) (पद्ये) (वाक्) वाणी (ओजः) मानसं बलम् (सह) (ओजः) शारीरं बलम् (मयि) आत्मनि (प्राणापानौ) प्राणश्चाऽपानश्च तावुच्छ्वासनिःश्वासौ ॥१ ॥