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अन्विद॑नुमते॒ त्वं मन्या॑सै॒ शं च॑ नस्कृधि। क्रत्वे॒ दक्षा॑य नो हिनु॒ प्र ण॒ऽआयू॑षि तारिषः ॥८ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अनु॑। इत्। अ॒नु॒म॒त॒ इत्यनु॑ऽमते। त्वम्। मन्या॑सै। शम्। च॒। नः॒। कृ॒धि॒ ॥ क्रत्वे॒॑। दक्षा॑य। नः॒। हि॒नु॒। प्र। नः॒। आयू॑षि। ता॒रि॒षः॒ ॥८ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:34» मन्त्र:8


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अनुमते) अनुकूल बुद्धिवाले सभापति विद्वन् ! (त्वम्) आप जिसको (शम्) सुखकारी (अनु, मन्यासै) अनुकूल मानो, उससे युक्त (नः) हमको (कृधि) करो (क्रत्वे) बुद्धि (दक्षाय) बल वा चतुराई के लिये (नः) हमको (हिनु) बढ़ाओ (च) और (नः) हमारी (आयूंषि) अवस्थाओं को (इत्) निश्चय कर (प्र, तारिषः) अच्छे प्रकार पूर्ण कीजिये ॥८ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को चाहिये कि जैसे स्वार्थसिद्धि के अर्थ प्रयत्न किया जाता, वैसे अन्यार्थ में भी प्रयत्न करें, जैसे आप अपने कल्याण और वृद्धि चाहते हैं, वैसे औरों की भी चाहें। इस प्रकार सबकी पूर्ण अवस्था सिद्ध करें ॥८ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

अन्वय:

(अनु) (इत्) एव (अनुमते) अनुकूला मतिर्यस्य तत्सम्बुद्धौ (त्वम्) (मन्यासै) मन्यस्व (शम्) सुखम् (च) (नः) अस्मान् (कृधि) कुरु (क्रत्वे) प्रज्ञायै (दक्षाय) बलाय चतुरत्वाय वा (नः) अस्मान् (हिनु) वर्द्धय (प्र) (नः) अस्माकम् (आयूंषि) जीवनादीनि (तारिषः) सन्तारयसि ॥८ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे अनुमते सभापते विद्वंस्त्वं ! यच्छमनुमन्यासै तेन युक्तान्नस्कृधि, क्रत्वे दक्षाय नो हिनु च न आयूंषि चेत्प्रतारिषः ॥८ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैर्यथा स्वार्थसिद्धये प्रयत्यते, तथैवान्यार्थेऽपि प्रयत्नो विधेयो यथा स्वस्य कल्याणवृद्धी अन्वेष्टव्ये, तथाऽन्येषामपि। एवं सर्वेषां पूर्णमायुः सम्पादनीयम् ॥८ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणूस स्वतःच्या स्वार्थसिद्धीसाठी जसा प्रयत्न करतो तसा इतरांसाठीही करावा. आपल्या कल्याणाची जशी इच्छा बाळगतो तशी इतरांसाठीही बाळगावी. याप्रमाणे सर्वांची आयुष्ये परिपूर्ण करावीत.