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पि॒तुं नु स्तो॑षं म॒हो ध॒र्माणं॒ तवि॑षीम्। यस्य॑ त्रि॒तो व्योज॑सा वृ॒त्रं विप॑र्वम॒र्द्दय॑त् ॥७ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

पितुम्। नु। स्तो॒ष॒म्। म॒हः। धर्मा॑ण॑म्। तवि॑षीम् ॥ यस्य॑। त्रि॒तः। वि। ओज॑सा। वृ॒त्रम्। विप॑र्व॒मिति॒ विऽप॑र्वम्। अ॒र्दय॑त् ॥७ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:34» मन्त्र:7


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब कौन मनुष्य शत्रुओं को जीत सकता है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - मैं (यस्य) जिसके (पितुम्) अन्न (महः) महान् (धर्माणम्) पक्षपातरहित न्यायाचरणरूप धर्म और (तविषीम्) बलयुक्त सेना की (नु) शीघ्र (स्तोषम्) स्तुति करता हूँ, वह राजपुरुष (त्रितः) तीनों काल में जैसे सूर्य्य (ओजसा) जल के साथ वर्त्तमान (विपर्वम्) जिसकी बादल रूप गाँठ भिन्न-भिन्न हों, उस (वृत्रम्) मेघ को (वि, अर्दयत्) विशेष कर नष्ट करता है, वैसे शत्रुओं के जीतने को समर्थ होता है ॥७ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जिसने सत्य-धर्म, बलवती सेना और पुष्कल अन्नादि सामग्री धारण की है, वह जैसे सूर्य्य मेघ को, वैसे शत्रुओं को जीत सकता है ॥७ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ कः शत्रून् विजेतुं शक्नोतीत्याह ॥

अन्वय:

(पितुम्) अन्नम् (नु) सद्यः (स्तोषम्) स्तुवे (महः) महान्तम् (धर्माणम्) पक्षपातरहितं न्यायाचरणं धर्मम् (तविषीम्) बलयुक्तां सेनाम्। तविषीति बलनामसु पठितम् ॥ (निघं०२.९) (यस्य) (त्रितः) त्रिषु कालेषु। सप्तम्यर्थे तसिः। (वि) (ओजसा) उदकेन सह। ओजस इत्युदकनामसु पठितम् ॥ (निघं०१.१२) (वृत्रम्) मेघम् (विपर्वम्) विगतानि पर्वाणि ग्रन्थयो यस्य तम् (अर्दयत्) अर्दयति नाशयति ॥७ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - अहं यस्य पितुं महो धर्माणं तविषीं नु स्तोषं स राजपुरुषः त्रितः सूर्य ओजसा सह वर्त्तमानं विपर्वं वृत्रं व्यर्दयदिव शत्रूञ्जेतुं शक्नोति ॥७ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। येन सत्यो धर्मो बलवती सेना पुष्कलान्नादिसामग्री च ध्रियते स सूर्य्यो मेघमिव शत्रून् विजेतुं शक्नुयात् ॥७ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. ज्याने सत्य धर्म, बलवान सेना व पुष्कळ अन्न इत्यादी साधने प्राप्त केलेली आहेत. तो सूर्य जसा मेघरूपी शत्रूंना जिंकतो तसे शत्रूला जिंकू शकतो.