वांछित मन्त्र चुनें

यस्मि॒न्नृचः॒ साम॒ यजू॑षि॒ यस्मि॒न् प्रति॑ष्ठिता रथना॒भावि॑वा॒राः। यस्मिँ॑श्चि॒त्तꣳ सर्व॒मोतं॑ प्र॒जानां॒ तन्मे॒ मनः॑ शि॒वस॑ङ्कल्पमस्तु ॥५ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यस्मि॑न्। ऋचः॑। साम॑। यजू॑षि। यस्मि॑न्। प्रति॑ष्ठि॑ता। प्रति॑स्थ॒तेति॒ प्रति॑ऽस्थिता। र॒थ॒ना॒भावि॒वेति॑ रथना॒भौऽइ॑व। अ॒राः ॥ यस्मि॑न्। चि॒त्तम्। सर्व॑म्। ओत॒मित्याऽउ॑तम्। प्र॒जाना॒मिति॑ प्र॒ऽजाना॑म्। तत्। मे॒। मनः॑। शि॒वस॑ङ्कल्प॒मिति॑ शि॒वऽस॑ङ्कल्पम्। अ॒स्तु ॥५ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:34» मन्त्र:5


बार पढ़ा गया

हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यस्मिन्) जिस मन में (रथनाभाविव, अराः) जैसे रथ के पहिये के बीच के काष्ठ में अरा लगे होते हैं, वैसे (ऋचः) ऋग्वेद (साम) सामवेद (यजूंषि) यजुर्वेद (प्रतिष्ठिता) सब ओर से स्थित और (यस्मिन्) जिसमें अथर्ववेद स्थित है, (यस्मिन्) जिसमें (प्रजानाम्) प्राणियों का (सर्वम्) समग्र (चित्तम्) सर्व पदार्थसम्बन्धी ज्ञान (ओतम्) सूत में मणियों के समान संयुक्त है, (तत्) वह (मे) मेरा (मनः) मन (शिवसङ्कल्पम्) कल्याणकारी वेदादि सत्यशास्त्रों का प्रचाररूप सङ्कल्पवाला (अस्तु) हो ॥५ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमा और वाचकलुप्तोपमालङ्कार हैं। हे मनुष्यो ! तुम लोगों को चाहिये कि जिस मन के स्वस्थ रहने में ही वेदादि विद्याओं का आधार और जिसमें सब व्यवहारों का ज्ञान एकत्र होता है, उस अन्तःकरण को विद्या और धर्म के आचरण से पवित्र करो ॥५ ॥
बार पढ़ा गया

संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(यस्मिन्) मनसि (ऋचः) ऋग्वेदः (साम) सामवेदः (यजूंषि) यजुर्वेदः (यस्मिन्) (प्रतिष्ठिता) प्रतिष्ठितानि (रथनाभाविव) यथा रथस्य रथचक्रस्य मध्यमे काष्ठे सर्वेऽवयवा लग्ना भवन्ति तथा (अराः) रथचक्रावयवाः (यस्मिन्) (चित्तम्) सर्वपदार्थविषयिज्ञानम् (सर्वम्) समग्रम् (ओतम्) सूत्रे मणिगणा इव प्रोतम् (प्रजानाम्) (तत्) (मे) मम (मनः) (शिवसङ्कल्पम्) शिवः कल्याणकरो वेदादिसत्यशास्त्रप्रचारसङ्कल्पो यस्मिँस्तत् (अस्तु) भवतु ॥५ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - रथनाभाविवारा यस्मिन् मनसि ऋचः साम यजूंषि प्रतिष्ठिता, यस्मिन्नथर्वाणः प्रतिष्ठिता भवन्ति, यस्मिन् प्रजानां सर्व चित्तमोतमस्ति, तन्मे मनः शिवसङ्कल्पमस्तु ॥५ ॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमावाचकलुप्तोपमालङ्कारौ। हे मनुष्याः ! युष्माभिर्यस्य स्वास्थ्य एव वेदादिपठनपाठनव्यवहारो घटते तत् मन एव वेदादिविद्याधारं यत्र सर्वेषां व्यवहाराणां ज्ञानं सञ्चितं भवति, तदन्तःकरणं विद्याधर्माचरणेन पवित्रं संपादनीयम् ॥५ ॥
बार पढ़ा गया

मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! रथामध्ये आरे असल्याप्रमाणे स्वस्थ मनात ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद व अथर्ववेद स्थित आहेत. ज्या मनात पदार्थांचे व प्राण्यांचे व्यावहारिक ज्ञान धाग्यात मणी गुंफल्याप्रमाणे स्थित आहे ते मन विद्या व धर्म यांद्वारे पवित्र करा.