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इडा॑यास्त्वा प॒दे व॒यं नाभा॑ पृथि॒व्याऽअधि॑। जात॑वेदो॒ नि धी॑म॒ह्यग्ने॑ ह॒व्याय॒ वोढ॑वे ॥१५ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

इडा॑याः। त्वा॒। प॒दे। व॒यम्। नाभा॑। पृ॒थि॒व्याः। अधि॑ ॥ जात॑वेद॒ इति॑ जात॑ऽवेदः। नि। धी॒म॒हि॒। अग्ने॑। ह॒व्याय॑। वोढ॑वे ॥१५ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:34» मन्त्र:15


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

कैसा मनुष्य राज्य के अधिकार पर स्थापित करने योग्य है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (जातवेदः) उत्पन्न बुद्धिवाले (अग्ने) अग्नि के तुल्य तेजस्वी विद्वन् राजन् ! (वयम्) अध्यापक तथा उपदेशक हम लोग (इडायाः) प्रशंसित वाणी की (पदे) व्यवस्था तथा (पृथिव्याः) विस्तृत भूमि के (अधि) ऊपर (नाभा) मध्यभाग में (त्वा) आपको (हव्याय) देने योग्य पदार्थों को (वोढवे) प्राप्त करने वा कराने के लिये (नि, धीमहि) निरन्तर स्थापित करते हैं ॥१५ ॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वान् राजन् ! जिस अधिकार में आपको हम लोग स्थापित करें, उस अधिकार को धर्म और पुरुषार्थ से यथावत् सिद्ध कीजिये ॥१५ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

किंभूतो जनो राज्याधिकारे स्थापनीय इत्याह ॥

अन्वय:

(इडायाः) प्रशंसिताया वाचः (त्वा) त्वाम् (पदे) प्रतिष्ठायाम् (वयम्) अध्यापकोपदेशकाः (नाभा) नाभौ मध्ये (पृथिव्याः) विस्तीर्णाया भूमेः (अधि) उपरि (जातवेदः) जातप्रज्ञान (नि) नितराम् (धीमहि) स्थापयेम (अग्ने) अग्निरिव तेजस्विन् विद्वन् राजन् ! (हव्याय) होतुं दातुमर्हम्। अत्र विभक्तिव्यत्ययः। (वोढवे) वोढुं प्राप्तुं प्रापयितुं वा ॥१५ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे जातवेदोऽग्ने ! वयमिडायाः पदे पृथिव्या अधि नाभा त्वा हव्याय वोढवे नि धीमहि ॥१५ ॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वन् राजन् ! यस्मिन्नधिकारे त्वां वयं स्थापयेम, तमधिकारं धर्मपुरुषार्थाभ्यां यथावत् साध्नुहि ॥१५ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे विद्वान राजा ! जो अधिकार आम्ही तुम्हाला दिलेला आहे त्या अधिकाराला धर्म व पुरुषार्थाने सिद्ध करा.