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आ या॑त॒मुप॑ भूषतं॒ मध्वः॑ पिबतमश्विना। दु॒ग्धं पयो॑ वृषणा जेन्यावसू॒ मा नो॑ मर्धिष्ट॒मा ग॑तम् ॥८८ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आ। या॒त॒म्। उप॑। भू॒ष॒त॒म्। मध्वः॑। पि॒ब॒त॒म्। अ॒श्वि॒ना॒ ॥ दु॒ग्धम्। पयः॑। वृ॒ष॒णा॒। जे॒न्या॒व॒सू॒ इति॑ जेन्याऽवसू। मा। नः॒। म॒र्धि॒ष्ट॒म्। आ। ग॒त॒म्। ॥८८ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:33» मन्त्र:88


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (वृषणा) पराक्रमवाले (जेन्यावसू) जयशीलजनों को बसानेवाले वा जीतने योग्य अथवा जीता है धन जिन्होंने ऐसे (अश्विना) विद्यादि शुभ गुणों में व्याप्त राजप्रजाजन तुम दोनों सुख को (आ, यातम्) अच्छे प्रकार प्राप्त होओ, प्रजाओं को (उप, भूषतम्) सुशोभित करो, (मध्वः) वैद्यकशास्र की रीति से सिद्ध किये मधुर रस को (पिबतम्) पीओ, (पयः) जल को (दुग्धम्) पूर्ण करो अर्थात् कोई जल विना दुःखी न रहे। (नः) हमको (मा) मत (मर्धिष्टम्) मारो और धर्म से विजय को (आ, गतम्) अच्छे प्रकार प्राप्त होओ ॥८८ ॥
भावार्थभाषाः - जो राजप्रजाजन सबको विद्या और उत्तम शिक्षा से सुशोभित करें, सर्वत्र नहर आदि के द्वारा जल पहुँचावें, श्रेष्ठों को न मार के दुष्टों को मारें, वे जीतनेवाले हुए अतोल लक्ष्मी को पाकर निरन्तर सुख को प्राप्त होवें ॥८८ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(आ) (यातम्) प्राप्नुतम् (उप) (भूषतम्) अलं कुरुतम् (मध्वः) मधुरं वैद्यकशास्त्रसिद्धं रसम्। अत्र कर्मणि षष्ठी। (पिबतम्) (अश्विना) विद्यादिशुभगुणव्यापिनौ राजप्रजाजनौ (दुग्धम्) पूर्णं कुरुतम् (पयः) उदकम्। पय इत्युदकनामसु पठितम् ॥ (निघं०१.१२) (वृषणा) वीर्य्यवन्तौ (जेन्यावसू) यौ जेन्यान् जयशीलान् वासयतो यद्वा जेन्यं जेतव्यं जितं वा वसु धनं याभ्यां तौ (मा) (नः) अस्मान् (मर्धिष्टम्) हिंस्तम् (आ) (गतम्) समन्तात् प्राप्नुतम् ॥८८ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे वृषणा जेन्यावसू अश्विना ! युवां सुखमायातं प्रजा उपभूषतं मध्वः पिबतं पयो दुग्धं नोऽस्मान् मा मर्धिष्टं धर्मेण विजयमागतम् ॥८८ ॥
भावार्थभाषाः - ये राजप्रजाजनाः सर्वान् विद्यासुशिक्षाभ्यामलं कुर्य्युः, सर्वत्र कुल्यादिद्वारा जलं गमयेयुः, श्रेष्ठान्न हिंसित्वा दुष्टान् हिंस्युस्ते विजेतारः सन्तोऽतुलां श्रियं प्राप्य सततं सुखं लभेरन् ॥८८ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे राजे व प्रजानन सर्वांना विद्या व उत्तम शिक्षणानेयुक्त करतात व सर्वत्र कालवे तयार करून पाणीपुरवठा करतात. श्रेष्ठांना न मारता दुष्टांना मारतात ते अजिंक्य बनतात व लक्ष्मी प्राप्त करून निरंतर सुख भोगतात.