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ब्रह्मा॑णि मे म॒तयः॒ शꣳसु॒तासः॒ शुष्म॑ऽइयर्त्ति॒ प्रभृ॑तो मे॒ऽअद्रिः॑। आ शा॑सते॒ प्रति॑ हर्य्यन्त्यु॒क्थेमा हरी॑ वहत॒स्ता नो॒ऽअच्छ॑ ॥७८ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ब्रह्मा॑णि। मे॒। म॒तयः॑। शम्। सु॒तासः॑। शुष्मः॑। इ॒य॒र्त्ति॒। प्रभृ॑त॒ इति॒ प्रभृ॑तः। मे॒। अद्रिः॑ ॥ आ। शा॒स॒ते॒। प्रति॑। ह॒र्य्य॒न्ति॒। उ॒क्था। इ॒मा। हरी॒ऽइति॒ हरी॑। व॒ह॒तः॒। ता। नः॒। अच्छ॑ ॥७८ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:33» मन्त्र:78


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर विद्वान् लोग क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सुतासः) विद्या और सुन्दर शिक्षा से युक्त ऐश्वर्यवाले (मतयः) बुद्धिमान् लोग (मे) मेरे लिये जिन (ब्रह्माणि) धनों की (प्रति, हर्यन्ति) प्रतीति से कामना करते और (इमा) इन (उक्था) प्रशंसा के योग्य वेदवचनों की (आ, शासते) अभिलाषा करते हैं और (शुष्मः) बलकारी (प्रभृतः) अच्छे प्रकार हवनादि से पुष्ट किया (अद्रिः) मेघ (मे) मेरे लिये जिस (शम्) सुख को (इयर्त्ति) पहुँचाता (ता) उनको (नः) हमारे लिये (हरी) हरणशील अध्यापक और अध्येता (अच्छा, वहतः) अच्छे प्रकार प्राप्त होते हैं ॥७८ ॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वानों ! जिस कर्म से विद्या और मेघ की उन्नति हो उसकी क्रिया करो। जो लोग तुमसे विद्या और सुशिक्षा चाहते हैं, उनको प्रीति से देओ और जो आपसे अधिक विद्यावाले हों, उनसे तुम विद्या ग्रहण करो ॥७८ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्विद्वांसः किं कुर्युरित्याह ॥

अन्वय:

(ब्रह्माणि) धनानि (मे) मह्यम् (मतयः) मेधाविनः। मतय इति मेधाविनाम ॥ (निघं०३.१५) (शम्) सुखम् (सुतासः) विद्यासुशिक्षाभ्यां निष्पन्ना ऐश्वर्यवन्तः (शुष्मः) बलकरः (इयर्त्ति) अर्पयति। अत्रान्तर्गतो णिच्। (प्रभृतः) प्रकर्षेण हवनादिना पोषितः (मे) मह्यम् (अद्रिः) मेघः (आ) (शासते) आशां कुर्वन्ति। (प्रति) (हर्यन्ति) कामयन्ते (उक्था) प्रशंसनीयानि वेदवचांसि (इमा) इमानि (हरी) हरणशीलावध्यापकाऽध्येतारौ (वहतः) प्रापयतः (ता) तानि (नः) अस्मभ्यम् (अच्छ) ॥७८ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - सुतासो मतयो मे यानि ब्रह्माणि प्रति हर्य्यन्ति इमोक्थाऽऽशासते शुष्मः प्रभृतोऽद्रिर्मे यत् शमियर्त्ति ता तानि नोऽस्मभ्यं हर्य्यच्छ वहतः ॥७८ ॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वांसो ! येन कर्मणा विद्यामेधोन्नतिः स्यात् तत्कुरुत ये युष्मद्विद्यासुशिक्षे कामयन्ते तान् प्रीत्या प्रयच्छत ये भवद्भ्योऽधिकास्तेभ्यो यूयं विद्यां गृह्णीत ॥७८ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे विद्वानांनो ! ज्या कार्याने विद्या व मेधा यांची उन्नती होते ती क्रिया करा. जे लोक तुमच्याकडून विद्या व चांगले शिक्षण शिकू इच्छितात त्यांना प्रेमाने विद्या शिकवा व जे तुमच्यापेक्षा जास्त विद्यावान असतील त्यांच्याकडून विद्या ग्रहण करा.