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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब पृथिवी सूर्य कैसे हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे मनु्ष्यो ! जैसे (रप्सुदा) सुन्दर रूप देनेवाले (उभा) दोनों (कर्णा) कार्यसाधक (हिरण्यया) ज्योतिःस्वरूप (मही) महत्परिमाणवाले सूर्य-पृथिवी (यज्ञस्य) संगत संसार के (अवतम्) कूप के तुल्य रक्षा करनेवाले होते और (गावः) किरण भी रक्षक होवें, वैसे इनकी तुम लोग (उप, अवत) रक्षा करो ॥७१ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे किसान लोग कूप के जल से खेतों और वाटिकाओं की सम्यक् रक्षा कर धनवान् होते, वैसे पृथिवी-सूर्य सबके धनकारक होते हैं ॥७१ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथ पृथिवीसूर्यौ कीदृशावित्याह ॥
अन्वय:
(गावः) किरणाः (उप) (अवत) रक्षत (अवतम्) कूपम् (मही) द्यावापृथिव्यौ (यज्ञस्य) सङ्गतस्य संसारस्य (रप्सुदा) सुरूपप्रदे (उभा) उभे (कर्णा) कर्त्र्यौ। (हिरण्यया) ज्योतिष्प्रचुरे ॥७१ ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! यथा रप्सुदा उभा कर्णा हिरण्यया मही यज्ञस्यावतमिव रक्षिके भवतो गावश्च रक्षकाः स्युस्तथैतान् यूयमुपावत ॥७१ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा कृषीवलाः कूपोदकेन क्षेत्राण्यारामांश्च संरक्ष्य श्रीमन्तो भवन्ति तथा पृथिवीसूर्यौ सर्वेषां श्रीकारके भवतः ॥७१ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे शेतकरी विहिरीच्या पाण्याने शेती व मळे यांचे रक्षण करतात व श्रीमंत होतात तसे पृथ्वी व सूर्य सर्वांना धन प्राप्त करून देतात.