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इ॒न्द्रा॒ग्नी मि॒त्रावरु॒णादि॑ति॒ꣳ स्वः᳖ पृथि॒वीं द्यां म॒रुतः॒ पर्व॑ताँ२ऽअ॒पः। हु॒वे विष्णुं॑ पू॒षणं॒ ब्रह्म॑ण॒स्पतिं॒ भगं॒ नु शꣳस॑ꣳ सवि॒तार॑मू॒तये॑ ॥४९ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

इ॒न्द्रा॒ग्रीऽइती॑न्द्रा॒ग्नी। मि॒त्रावरु॑णा। अदि॑तिम्। स्व᳖रिति॒ स्वः᳖। पृ॒थि॒वीम्। द्याम्। म॒रुतः॑। पर्व॑तान्। अ॒पः ॥ हु॒वे। विष्णु॑म्। पू॒षण॑म्। ब्रह्म॑णः। पति॑म्। भग॑म्। नु। शꣳस॑म्। स॒वि॒तार॑म्। ऊ॒तये॑ ॥४९ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:33» मन्त्र:49


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अध्यापक और अध्येता लोग क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे मैं (ऊतये) रक्षा आदि के लिये (इन्द्राग्नी) संयुक्त बिजुली और अग्नि (मित्रावरुणा) मिले हुए प्राण उदान (अदितिम्) अन्तरिक्ष (पृथिवीम्) भूमि (द्याम्) सूर्य (मरुतः) विचारशील मनुष्यों (पर्वतान्) मेघों वा पहाड़ों (अपः) जलों (विष्णुम्) व्यापक ईश्वर (पूषणम्) पुष्टिकर्त्ता (ब्रह्मणस्पतिम्) ब्रह्माण्ड वा वेद के पालक ईश्वर (भगम्) ऐश्वर्य (शंसम्) प्रशंसा के योग्य (सवितारम्) ऐश्वर्यकारक राजा और (स्वः) सुख की (नु) शीघ्र (हुवे) स्तुति करूँ, वैसे उनकी तुम भी प्रशंसा करो ॥४९ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। अध्यापक और अध्येता को चाहिये कि प्रकृति से लेकर पृथिवी पर्य्यन्त पदार्थों को रक्षा आदि के लिये जानें ॥४९ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अध्यापकाऽध्येतारः किं कुर्युरित्याह ॥

अन्वय:

(इन्द्राग्नी) संयुक्तौ विद्युदग्नी (मित्रावरुणा) मिलितौ प्राणोदानौ (अदितिम्) अन्तरिक्षम् (स्वः) सुखम् (पृथिवीम्) भूमिम् (द्याम्) सूर्यम् (मरुतः) मननशीलान् मनुष्यान् (पर्वतान्) मेघान् शैलान् वा (अपः) जलानि (हुवे) स्तुयाम् (विष्णुम्) व्यापकम् (पूषणम्) पुष्टिकर्त्तारम् (ब्रह्मणस्पतिम्) ब्रह्माण्डस्य वेदस्य वा पालकम् (भगम्) ऐश्वर्यम् (नु) सद्यः (शंसम्) प्रशंसनीयम् (सवितारम्) ऐश्वर्यकारकं राजानम् (ऊतये) रक्षणाद्याय ॥४९ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! यथाहमूतय इन्द्राग्नी मित्रावरुणादितिं पृथिवीं द्यां मरुतः पर्वतानपो विष्णुं पूषणं ब्रह्मणस्पतिं भगं शंसं सवितारं स्वर्नु हुवे तथैतान् यूयमपि प्रशंसत ॥४९ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। अध्यापकाऽध्येतृभिः प्रकृतिमारभ्य भूमिपर्यन्ताः पदार्था रक्षणाद्याय विज्ञेयाः ॥४९ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. अध्यापक व शिष्य यांनी प्रकृतीपासून ते पृथ्वीपर्यंतच्या (सृष्टीतील पदार्थ) पदार्थांचे रक्षण करण्याबद्दलचे ज्ञान प्राप्त करावे.