बार पढ़ा गया
हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर अध्यापक और उपदेशक कैसे हों, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे अध्यापक और उपदेशक विद्वान् लोगो ! जैसे (वरुणः) उदान वायु के तुल्य उत्तम विद्वान् और (मित्रः) प्राण के तुल्य प्रिय मित्र (विश्वाभिः) समग्र (ऊतिभिः) रक्षा आदि क्रियाओं से (प्राविता) रक्षक (भुवत्) होवे, वैसे आप दोनों (नः) हमको (सुराधसः) सुन्दर धन से युक्त (करताम्) कीजिये ॥४६ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो अध्यापक और उपदेशक लोग प्राणों के तुल्य सबमें प्रीति रखनेवाले और उदान के समान शरीर और आत्मा के बल को देनेवाले हों, वे ही सबके रक्षक, सबको धनाढ्य करने को समर्थ होवें ॥४६ ॥
बार पढ़ा गया
संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनरध्यापकोपदेशकौ कीदृशावित्याह ॥
अन्वय:
(वरुणः) उदान इवोत्तमो विद्वान् (प्राविता) रक्षकः (भुवत्) भवेत् (मित्रः) शरण इव प्रियः सखा (विश्वाभिः) समग्राभिः (ऊतिभिः) रक्षादिक्रियाभिः (करताम्) कुर्याताम् (नः) अस्मान् (सुराधसः) सुष्ठु धनयुक्तान् ॥४६ ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे अध्यापकोपदेशकौ विद्वांसौ ! यथा वरुणो मित्रश्च विश्वाभिरूतिभिः प्राविता भुवत् तथा भवन्तौ नः सुराधसः करताम् ॥४६ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। येऽध्यापकोपदेशकाः प्राणवत्सर्वेषु प्रीता उदानवच्छरीरात्मबलप्रदाः स्युस्त एव सर्वेषां रक्षकाः सर्वानाढ्यान् कर्त्तुं शक्नुयुः ॥४६ ॥
बार पढ़ा गया
मराठी - माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे अध्यापक उपदेशक प्राणवायूप्रमाणे सर्वांचे प्रिय मित्र असतात व उदानवायूप्रमाणे शरीर व आत्मा बलवान करतात तेच सर्वांचे रक्षक असतात व सर्वांना धनवान बनवू शकतात.