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बण्म॒हाँ२ऽअ॑सि सूर्य्य॒ बडा॑दित्य म॒हाँ२अ॑सि। म॒हस्ते॑ स॒तो म॑हि॒मा प॑नस्यते॒ऽद्धा दे॑व म॒हाँ२ऽअ॑सि ॥३९ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

बट्। म॒हान्। अ॒सि॒। सू॒र्य्य। बट्। आ॒दि॒त्य॒। म॒हान्। अ॒सि॒ ॥ म॒हः। ते। स॒तः। म॒हि॒मा। प॒न॒स्य॒ते॒। अ॒द्धा। दे॒व॒। म॒हान्। अ॒सि॒ ॥३९ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:33» मन्त्र:39


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (सूर्य) चराचर के अन्तर्यामिन् ईश्वर ! जिस कारण आप (बट्) सत्य (महान्) महत्त्वादि गुणयुक्त (असि) हैं। हे (आदित्य) अविनाशीस्वरूप ! जिससे आप (बट्) अनन्त ज्ञानवान् (महान्) बड़े (असि) हो (सतः) सत्यस्वरूप (महः) महान् (ते) आपका (महिमा) महत्त्व (पनस्यते) लोगों से स्तुति किया जाता। हे (देव) दिव्य गुणकर्मस्वभावयुक्त ईश्वर ! जिससे आप (श्रद्धा) प्रसिद्ध (महान्) महान् (असि) हैं, इसलिये हमको उपासना करने के योग्य हैं ॥३९ ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जिस ईश्वर के महिमा को पृथिवी, सूर्यादि पदार्थ जानते हैं, जो सबसे बड़ा है, उसको छोड़ के किसी अन्य की उपासना नहीं करनी चाहिये ॥३९ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(बट्) सत्यम् (महान्) महत्त्वादिगुणविशिष्टः (असि) भवसि (सूर्य) चराचरात्मन् ! (बट्) अनन्तज्ञान (आदित्य) अविनाशिस्वरूप (महान्) (असि) (महः) महतः (ते) तव (सतः) सत्यस्वरूपस्य (महिमा) (पनस्यते) स्तूयते (श्रद्धा) प्रसिद्धम् (देव) दिव्यगुणकर्मस्वभावयुक्त ! (महान्) (असि) ॥३९ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे सूर्य्य ! बण्महानसि, हे आदित्य ! यतस्त्वं बण्महानसि सतो महस्ते महिमा पनस्यते। हे देव ! यतस्त्वमद्धा महानसि, तस्मादस्माभिरुपास्योऽसि ॥३९ ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्याः ! यस्येश्वरस्य महिमानं पृथिवीसूर्यादिपदार्था ज्ञापयन्ति, यः सर्वेभ्यो महानस्ति तं विहाय कस्याप्यन्यस्योपासना नैव कार्य्या ॥३९ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! पृथ्वी, सूर्य इत्यादी पदार्थांवरून ज्या ईश्वराची महिमा कळून येते व जो सर्वांत महान आहे त्याला सोडून इतर कोणाची उपासना करू नये.