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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब राजपुरुष कैसे हों, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे (सूर्य) सूर्य के तुल्य वर्त्तमान तेजस्विन् ! जैसे (तरणिः) अन्धकार से पार करनेवाला (विश्वदर्शतः) सबको देखने योग्य (ज्योतिष्कृत्) अग्नि, विद्युत्, चन्द्रमा, नक्षत्र, ग्रह, तारे आदि को प्रकाशित करनेवाले सूर्यलोक (रोचनम्) रुचिकारक (विश्वम्) समग्र राज्य को प्रकाशित करता है, वैसे आप (असि) हैं, जिस कारण न्याय और विनय से राज्य को (आ, भासि) अच्छे प्रकार प्रकाशित करते हो, इसलिये सत्कार पाने योग्य हो ॥३६ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो राजपुरुष विद्या के प्रकाशक होवें तो सबको आनन्द देने को समर्थ होवें ॥३६ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथ राजपुरुषाः कीदृशाः स्युरित्याह ॥
अन्वय:
(तरणिः) तारकः (विश्वदर्शतः) विश्वेन द्रष्टव्यः (ज्योतिष्कृत्) यो ज्योतींषि करोति सः (असि) (सूर्य्य) सूर्य्यवद्वर्तमान राजन् ! (विश्वम्) समग्रं राज्यम् (आ) (भासि) प्रकाशयसि (रोचनम्) रुचिकरम् ॥३६ ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे सूर्य ! त्वं यथा तरणिर्विश्वदर्शतो ज्योतिष्कृत् सविता रोचनं विश्वं प्रकाशयति तथा त्वमसि यतो न्यायविनयेन राज्यमाभासि तस्मात् सत्कर्त्तव्योऽसि ॥३६ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यदि राजपुरुषा विद्याप्रकाशकाः स्युस्तर्हि सर्वानानन्दयितुं शक्नुयुः ॥३६ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे राजपुरुष विद्येचा प्रसार करतात ते सर्वांना आनंद देऊ शकतात.