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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर मनुष्य क्या करे, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे (वृत्रहन्) मेघहन्ता सूर्य्य के तुल्य शत्रुहन्ता (सूर्य्य) विद्यारूप ऐश्वर्य के उत्पादक (इन्द्र) अन्नदाता सज्जन पुरुष ! (ते) आपके (यत्) जो (अद्य) आज दिन (सर्वम्) सब कुछ (वशे) वश में है (तत्) उसको (कत्, च) कब (अभि) (अगाः) सब ओर से उदित प्रकट सन्नद्ध कीजिये ॥३५ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो पुरुष सूर्य के तुल्य अविद्यारूप अन्धकार और दुष्टता को निवृत्त कर सबको वशीभूत करते हैं, वे अभ्युदय को प्राप्त होते हैं ॥३५ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनर्मनुष्यः किं कुर्यादित्याह ॥
अन्वय:
(यत्) (अद्य) अस्मिन् दिने (कत्) कदा (च) (वृत्रहन्) मेघहन्ता सूर्य्य इव (उत् अगाः) उदयं प्रापय (अभि) (सूर्य्य) विद्यैश्वर्योत्पादक ! (सर्वम्) (तत्) (इन्द्र) (ते) (वशे) ॥३५ ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे वृत्रहन् सूर्य्येन्द्र ! ते यदद्य सर्वं वशेऽस्ति तत् कच्चाभ्युदगाः ॥३५ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये पुरुषाः सूर्यवदविद्यान्धकारं दुष्टतां च निवार्य्य सर्वं वशीभूतं कुर्वन्ति तेऽभ्युदयं प्राप्नुवन्ति ॥३५ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे पुरुष सूर्याप्रमाणे (अविद्यारूपी) अंधःकार व दुष्टता यांचे निवारण करून सर्वांना वश करतात त्यांचा अभ्युदय होतो.