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आ न॒ऽइडा॑भिर्वि॒दथे॑ सुश॒स्ति वि॒श्वान॑रः सवि॒ता दे॒वऽए॑तु। अपि॒ यथा॑ युवानो॒ मत्स॑था नो॒ विश्वं॒ जग॑दभिपि॒त्वे म॑नी॒षा ॥३४ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आ। नः॒। इडा॑भिः। वि॒दथे॑। सु॒श॒स्तीति॑ सुऽश॒स्ति। वि॒श्वान॑रः। स॒वि॒ता। दे॒वः। ए॒तु॒ ॥ अपि॑। यथा॑। यु॒वा॒नः॒। मत्स॑थ। नः॒। विश्व॑म्। जग॑त्। अ॒भि॒पि॒त्व इत्य॑भिऽपि॒त्वे। म॒नी॒षा ॥३४ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:33» मन्त्र:34


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब उपदेशक लोग क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (युवानः) ज्वान ब्रह्मचर्य के साथ विद्या पढ़े हुए उपदेष्टा लोगो ! (यथा) जैसे (विश्वानरः) सबका नायक (देवः) उत्तम गुणोंवाला (सविता) सूर्य्य के तुल्य प्रकाशमान विद्वान् (इडाभिः) वाणियों से (विदथे) जताने योग्य व्यवहार में (सुशस्ति) सुन्दर प्रशंसायुक्त (नः) हमारे (विश्वम्) सब (जगत्) चेतन पुत्र गौ आदि को (आ, एतु) अच्छे प्रकार होवे, वैसे (अभिपित्वे) सम्मुख जाने में तुम लोग (मत्सथ) आनन्दित हूजिये जो (नः) हमारी (मनीषा) बुद्धि है, उसको (अपि) भी शुद्ध कीजिये ॥३४ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमा और वाचकलुप्तोपमालङ्कार हैं। जो सूर्य के तुल्य विद्या से प्रकाशस्वरूप, शरीर और आत्मा से युवावस्था को प्राप्त, सुशिक्षित, जितेन्द्रिय, सुशील होते हैं, वे सबको उपदेश से ज्ञान कराने को समर्थ होते हैं ॥३४ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथोपदेशकाः किं कुर्युरित्याह ॥

अन्वय:

(आ) समन्तात् (नः) अस्माकम् (इडाभिः) सुशिक्षिताभिर्वाग्भिः (विदथे) विज्ञापनीये व्यवहारे (सुशस्ति) शोभना शस्तिः प्रशंसा यस्मिंस्तत् (विश्वानरः) विश्वेषां नायकः (सविता) सूर्य इव भासमानः (देवः) दिव्यगुणः (एतु) प्राप्नोतु (अपि) (यथा) (युवानः) प्राप्तयौवना ब्रह्मचर्येणाधीतविद्याः (मत्सथ) आनन्दत। अत्र संहितायाम् [अ०६.३.११४] इति दीर्घः। (नः) अस्माकम् (विश्वम्) समग्रम् (जगत्) जङ्गमं पुत्रगवादिकम् (अभिपित्वे) आभिमुख्यगमने (मनीषा) मेधा ॥३४ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे युवानो ! यथा विश्वानरो देवः सवितेडाभिर्विदथे सुशस्ति नो विश्वं जगदैतु, तथाऽभिपित्वे यूयं मत्सथ या नो मनीषा तामपि शोधयत ॥३४ ॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमावाचकलुप्तोपमालङ्कारौ। ये सूर्यवद्विद्यया प्रकाशात्मानः शरीरात्मभ्यां प्राप्तयौवनाः सुशिक्षिता जितेन्द्रियाः सुशीला भवन्ति, ते सर्वानुपदेशेन विज्ञापयितुं शक्नुवन्ति ॥३४ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमा व वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे सूर्याप्रमाणे विद्येने प्रकाशयुक्त असतात, ज्यांचे शरीर व आत्मे तरुण असतात, जे सुशक्षित सुशील जितेंद्रिय असतात ते सर्वांना उपदेश करून ज्ञान देऊ शकतात.