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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब सूर्यमण्डल कैसा है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जिस (जातवेदसम्) उत्पन्न हुए पदार्थों में विद्यमान (देवम्) चिलचिलाते हुए (सूर्य्यम्) सूर्य्यमण्डल को (विश्वाय) संसार को (दृशे) देखने के लिये (केतवः) किरणें (उत्, वहन्ति) ऊपर को आश्चर्यरूप प्राप्त करती हैं (त्यम्) उस (उ) ही को तुम लोग जानो ॥३१ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे सूर्य्य किरणों से संसार को दिखाता और आप सुशोभित होता, वैसे विद्वान् लोग सब विद्या और शिक्षाओं को दिखाकर सुन्दर शोभायमान हों ॥३१ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथ सूर्य्यमण्डलं कीदृशमित्याह ॥
अन्वय:
(उत्) आश्चर्ये (उ) (त्यम्) तम् (जातवेदसम्) जातेषु पदार्थेषु विद्यमानम् (देवम्) देदीप्यमानम् (वहन्ति) (केतवः) किरणाः (दृशे) दर्शनाय (विश्वाय) विश्वस्य। अत्र षष्ठ्यर्थे चतुर्थी। (सूर्यम्) सवितृमण्डलम् ॥३१ ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! यं जातवेदसं देवं सूर्य्यं विश्वाय दृशे केतव उद्वहन्ति त्यमु यूयं विजानीत ॥३१ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा किरणैः सूर्य्यः संसारं दर्शयति, स्वयं सुशोभते तथा विद्वांसोऽखिला विद्याः शिक्षा दर्शयित्वा सुशोभेरन् ॥३१ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसा सूर्य आपल्या किरणांद्वारे जगाला प्रकाश देतो तसे विद्वान लोक सर्व विद्या व शिक्षणाचा प्रसार करून शोभिवंत होतात.