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इन्द्रेहि॒ मत्स्यन्ध॑सो॒ विश्वे॑भिः सोम॒पर्व॑भिः। म॒हाँ२ऽअ॑भि॒ष्टिरोज॑सा ॥२५ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

इन्द्र॑। आ। इ॒हि॒। म॑त्सि। अन्ध॑सः। विश्वे॑भिः। सो॒म॒पर्व॑भि॒रिति॑ सोम॒पर्व॑ऽभिः ॥ म॒हान्। अ॒भि॒ष्टिः। ओज॑सा ॥२५ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:33» मन्त्र:25


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्य क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (इन्द्र) ऐश्वर्य देनेवाले विद्वन् ! जिस कारण आप (ओजसा) पराक्रम के साथ (महान्) बड़े (अभिष्टिः) सब ओर से सत्कार के योग्य (विश्वेभिः) सब (सोमपर्वभिः) सोमादि ओषधियों के अवयवों और (अन्धसः) अन्न से (मत्सि) तृप्त होते हो, इससे हमको (आ, इहि) प्राप्त हूजिये ॥२५ ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जिस कारण अन्न आदि से मनुष्यादि प्राणियों के शरीरादि का निर्वाह होता है, इससे इनके वृद्धि, सेवन, आहार और विहार यथावत् जानो ॥२५ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्याः किं कुर्य्युरित्याह ॥

अन्वय:

(इन्द्र) ऐश्वर्य्यप्रद विद्वन् ! (आ) (इहि) प्राप्नुहि (मत्सि) तृप्तो भव। मद तृप्तौ। शपो लुक्। (अन्धसः) अन्नात् (विश्वेभिः) अखिलैः (सोमपर्वभिः) सोमाद्योषधीनामवयवैः (महान्) (अभिष्टिः) अभियष्टव्यः सर्वतः पूज्यः। पृषोदरादित्वादिष्टसिद्धिः। (ओजसा) पराक्रमेण सह ॥२५ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे इन्द्र ! यतस्त्वमोजसा सह महानभिष्टिर्विश्वेभिः सोमपर्वभिरन्धसो मत्सि तस्मादस्मानेहि ॥२५ ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्याः ! यस्मादन्नादेर्मनुष्यादीनां शरीरादेर्निर्वाहो भवति, तस्मादेषां वृद्धिसेवनाहारविहारा यथावद्विजानीयुः ॥२५ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! ज्या अन्नामुळे मनुष्य प्राण्याच्या शरीराचा निर्वाह होतो त्या अन्नाची वृद्धी, सेवन आणि आहारविहाराबाबत ज्ञान प्राप्त करावे.