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श्रु॒धि श्रु॑त्कर्ण॒ वह्नि॑भिर्दे॒वैर॑ग्ने स॒याव॑भिः। आ सी॑दन्तु ब॒र्हिषि॑ मि॒त्रोऽअ॑र्य्य॒मा प्रा॑त॒र्यावा॑णोऽअध्व॒रम् ॥१५ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

श्रु॒धि। श्रु॒त्क॒र्णेति॑ श्रुत्ऽकर्ण। वह्नि॑भि॒रिति॒ वह्नि॑ऽभिः। दे॒वैः। अ॒ग्ने॒। स॒याव॑भि॒रिति॑ स॒याव॑ऽभिः ॥ आ। सी॒द॒न्तु॒। ब॒र्हिषि॑। मि॒त्रः। अ॒र्य्य॒मा। प्रा॒त॒र्यावा॑णः। प्रा॒त॒र्यावा॑न॒ इति॑ प्रातः॒ऽयावा॑नः। अ॒ध्व॒रम् ॥१५ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:33» मन्त्र:15


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब राजधर्म विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (श्रुत्कर्ण) अर्थियों के वचनों को सुननेहारे (अग्ने) अग्नि के तुल्य वर्त्तमान तेजस्वी विद्वन् ! वा राजन् ! आप (सयावभिः) जो साथ चलते उन (वह्निभिः) कार्यों का निर्वाह करनेहारे (देवैः) विद्वानों के साथ (अध्वरम्) रक्षा के योग्य राज्य के व्यवहार को (श्रुधि) सुनिये तथा (प्रातर्यावाणः) प्रातःकाल राजकार्यों को प्राप्त करनेहारे (मित्रः) पक्षपातरहित सबका मित्र और (अर्यमा) वैश्य या अपने अधिष्ठाताओं को यथार्थ माननेवाला ये सब (बर्हिषि) अन्तरिक्ष के तुल्य सभा में (आ, सीदन्तु) अच्छे प्रकार बैठें ॥१५ ॥
भावार्थभाषाः - सभापति राजा को चाहिये कि अच्छे परीक्षित मन्त्रियों को स्वीकार कर उनके साथ सभा में बैठ विवाद करनेवालों के वचन सुन के उन पर विचार कर यथार्थ न्याय करे ॥१५ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ राजधर्मविषयमाह ॥

अन्वय:

(श्रुधि) शृणु (श्रुत्कर्ण !) अर्थिवचः श्रोतारौ कर्णौ यस्य तत्सम्बुद्धौ (वह्निभिः) कार्यनिर्वाहकैः (देवैः) विद्वद्भिः सह (अग्ने) पावकद्वर्त्तमान विद्वन् राजन् वा (सयावभिः) ये सह यान्ति तैः (आ) (सीदन्तु) (बर्हिषि) अन्तरिक्ष इव सभायाम् (मित्रः) पक्षपातरहितः सर्वेषां सुहृत् (अर्यमा) योऽर्यान् वैश्यान् स्वामिनो वा मन्यते सः (प्रातर्यावाणः) ये प्रातर्यान्ति राजकार्याणि प्रापयन्ति (अध्वरम्) अहिंसनीयराज्यव्यवहारम् ॥१५ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे श्रुत्कर्णाग्ने ! सयावभिर्वह्निभिर्देवैः सहाध्वरं श्रुधि। प्रातर्यावाणो मित्रोऽर्यमा च बर्हिष्यासीदन्तु ॥१५ ॥
भावार्थभाषाः - सभापतिना राज्ञा सुपरीक्षितानमात्यान् स्वीकृत्य तैः सह सदसि स्थित्वा विवदमानवचांसि श्रुत्वा समीक्ष्य यथार्थो न्यायः कर्त्तव्यः ॥१५ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - राजाने परीक्षा करून मंत्री नेमावे. त्यांच्या समवेत सभा घ्याव्यात. विवाद करणाऱ्यांचे बोलणे ऐकून त्याच्यावर विचार करावा व यथार्थ न्याय द्यावा.