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रु॒चं ब्रा॒ह्मं ज॒नय॑न्तो दे॒वाऽअग्रे॒ तद॑ब्रुवन्। यस्त्वै॒वं ब्रा॑ह्म॒णो वि॒द्यात् तस्य॑ दे॒वाऽअ॑स॒न् वशे॑ ॥२१ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

रु॒चम्। ब्रा॒ह्मम्। ज॒नय॑न्तः। दे॒वाः। अग्रे॑। तत्। अ॒ब्रु॒व॒न् ॥ यः। त्वा॒। ए॒वम्। ब्रा॒ह्म॒णः। वि॒द्यात्। तस्य॑। दे॒वाः। अ॒स॒न्। वशे॑ ॥२१ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:31» मन्त्र:21


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब विद्वानों का कृत्य कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे ब्रह्मनिष्ठ पुरुष ! जो (रुचम्) रुचिकारक (ब्राह्मम्) ब्रह्म के उपासक (त्वा) आपको (जनयन्तः) सम्पन्न करते हुए (देवाः) विद्वान् लोग (अग्रे) पहिले (तत्) ब्रह्म, जीव और प्रकृति के स्वरूप को (अब्रुवन्) कहें (यः) जो (ब्राह्मणः) ब्राह्मण (एवम्) ऐसे (विद्यात्) जाने (तस्य) उसके वे (देवाः) विद्वान् (वशे) वश में (असन्) हों ॥२१ ॥
भावार्थभाषाः - यही विद्वानों का पहिला कर्त्तव्य है कि जो वेद, ईश्वर और धर्मादि में रुचि, उपदेश, अध्यापन, धर्मात्मता, जितेन्द्रियता, शरीर और आत्मा के बल को बढ़ाना, ऐसा करने से ही सब उत्तम गुण और भोग प्राप्त हो सकते हैं ॥२१ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ विद्वत्कृत्यमाह ॥

अन्वय:

(रुचम्) रुचिकरम् (ब्राह्मम्) ब्राह्मोपासकम् (जनयन्तः) निष्पादयन्तः (देवाः) विद्वांसः (अग्रे) (तत्) ब्रह्मजीवप्रकृतिस्वरूपम् (अब्रुवन्) ब्रुवन्तु (यः) (त्वा) (एवम्) अमुना प्रकारेण (ब्राह्मणः) (विद्यात्) विजानीयात् (तस्य) (देवाः) विद्वांसः (असन्) स्युः (वशे) तदधीनाः ॥२१ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे ब्रह्मनिष्ठ ! ये रुचं ब्राह्मं त्वा जनयन्तो देवा अग्रे तदब्रुवन् यो ब्राह्मण एवं विद्यात् तस्य ते देवा वशे असन् ॥२१ ॥
भावार्थभाषाः - इदमेवाऽऽद्यं विद्वत्कृत्यमस्ति यद्वेदेश्वरधर्मादिषु रुचिरुपदेशेनाध्यापनधार्मिकत्वजितेन्द्रियत्व-शरीरात्मबलवर्द्धनमेवं कृते सति सर्वे दिव्या गुणा भोगाश्च प्राप्तुं शक्याः ॥२१ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - विद्वानांचे पहिले कर्तव्य असे आहे की, (त्यांनी लोकांना सांगावे की) जी माणसे ईश्वर, धर्मामध्ये अभिरूची, उपदेश, अध्यापन, धार्मिकता, जितेंद्रियता, शरीर व आत्मशक्ती वाढवितात त्यांना सर्व उत्तम गुण व भोग प्राप्त होतात.