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पुन॑र्नः पितरो॒ मनो॒ ददा॑तु॒ दैव्यो॒ जनः॑। जी॒वं व्रात॑ꣳसचेमहि ॥५५॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

पुनः॑। नः॒। पि॒त॒रः॒। मनः॑। ददा॑तु। दैव्यः॑। जनः॑। जी॒वम्। व्रा॑तम्। स॒चे॒म॒हि॒ ॥५५॥

यजुर्वेद » अध्याय:3» मन्त्र:55


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मन शब्द से बुद्धि का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (पितरः) उत्पादक वा अन्न, शिक्षा वा विद्या को देकर रक्षा करनेवाले पिता आदि लोग आपकी शिक्षा से यह (दैव्यः) विद्वानों के बीच में उत्पन्न हुआ (जनः) विद्या वा धर्म से दूसरे के लिये उपकारों को प्रकट करनेवाला विद्वान् पुरुष (नः) हम लोगों के लिये (पुनः) इस जन्म वा दूसरे जन्म में (मनः) धारणा करनेवाली बुद्धि को (ददातु) देवे, जिससे (जीवम्) ज्ञानसाधनयुक्त जीवन वा (व्रातम्) सत्य बोलने आदि गुण समुदाय को (सचेमहि) अच्छे प्रकार प्राप्त करें ॥५५॥
भावार्थभाषाः - विद्वान् माता-पिता आचार्यों की शिक्षा के विना मनुष्यों का जन्म सफल नहीं होता और मनुष्य भी उस शिक्षा के विना पूर्ण जीवन वा कर्म के संयुक्त करने को समर्थ नहीं हो सकते। इस से सब काल में विद्वान् माता-पिता और आचार्यों को उचित है कि अपने पुत्र आदि को अच्छे प्रकार उपदेश से शरीर और आत्मा के बलवाले करें ॥५५॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनः शब्देन बुद्धिरुपदिश्यते ॥

अन्वय:

(पुनः) अस्मिन् जन्मनि पुनर्जन्मनि वा (नः) अस्मभ्यम् (पितरः) पान्त्यन्नसुशिक्षाविद्यादानेन तत्सम्बुद्धौ (मनः) धारणावतीं बुद्धिम् (ददातु) प्रयच्छतु (दैव्यः) यो देवेषु विद्वत्सु जातो विद्वान्। अत्र देवाद्यञञौ (अष्टा०४.१.८५) इति वार्तिकेन प्राग्दीव्यतीयान्तर्गते जातेऽर्थे यञ् प्रत्ययः। (जनः) यो विद्याधर्माभ्यां परोपकारान् जनयति प्रकटयति (जीवम्) ज्ञानसाधनयुक्तम् (व्रातम्) व्रतानां सत्यभाषणादीनां समूहस्तत् (सचेमहि) समवेयाम। अयं मन्त्रः (शत०२.६.१.३९) व्याख्यातः ॥५५॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे पितरो जनका विद्याप्रदाश्च भवच्छिक्षया दैव्यो जनो विद्वान् नोऽस्मभ्यं पुनः पुनर्मनोधारणावतीं बुद्धिं ददातु, येन वयं जीवं व्रातं सचेमहि समवेयाम ॥५५॥
भावार्थभाषाः - नहि मनुष्याणां विदुषां मातापित्राचार्याणां च सुशिक्षया विना मनुष्यजन्मसाफल्यं सम्भवति, न च मनुष्यास्तया विना पूर्णं जीवनं कर्म च समवैतुं शक्नुवन्ति, तस्मात् सर्वदा मातापित्राचार्यैः स्वसन्तानानि सम्यगुपदेशेन शरीरात्मबलवन्ति कर्त्तव्यानीति ॥५५॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - विद्वान आई-वडील व गुरू यांच्या संस्कारावाचून मनुष्य जन्म सफल होत नाही. माणसे ही अशा प्रकारच्या संस्कारावाचून पूर्ण जीवन जगण्यास किंवा कर्म करण्यास समर्थ होऊ शकत नाहीत. त्यासाठी विद्वान माता-पिता व आचार्य यांनी आपल्या पुत्रांना चांगला उपदेश करून त्यांचे शरीर व आत्मबल वाढवावे.