वांछित मन्त्र चुनें

त्वष्टा॑ वी॒रं दे॒वका॑मं जजान॒ त्वष्टु॒रर्वा॑ जायतऽआ॒शुरश्वः॑। त्वष्टे॒दं विश्वं॒ भुव॑नं जजान ब॒होः क॒र्त्तार॑मि॒ह य॑क्षि होतः ॥९ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

त्वष्टा॑। वी॒रम्। दे॒वका॑म॒मिति॑ दे॒वऽका॑मम्। ज॒जा॒न॒। त्वष्टुः॑। अर्वा॑। जा॒य॒ते॒। आ॒शुः। अश्वः॑। त्वष्टा॑। इ॒दम्। विश्व॑म्। भुव॑नम्। ज॒जा॒न॒। ब॒होः। क॒र्त्तार॑म्। इ॒ह। य॒क्षि॒। हो॒त॒रिति॑ होतः ॥९ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:29» मन्त्र:9


बार पढ़ा गया

हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (होतः) ग्रहण करनेहारे जन ! तू जैसे (त्वष्टा) विद्या आदि उत्तम गुणों से शोभित विद्वान् (देवकामम्) विद्वानों की कामना करनेहारे (वीरम्) वीर पुरुष को (जजान) उत्पन्न करता है, जैसे (त्वष्टुः) प्रकाशरूप शिक्षा से (आशुः) शीघ्रगामी (अर्वा) वेगवान् (अश्वः) घोड़ा (जायते) होता है। जैसे (त्वष्टा) अपने स्वरूप से प्रकाशित ईश्वर (इदम्) इस (विश्वम्) सब (भुवनम्) लोकमात्र को (जजान) उत्पन्न करता है, उस (बहोः) बहुविध संसार के (कर्त्तारम्) रचनेवाले परमात्मा का (इह) इस जगत् में (यक्षि) पूजन कीजिए, वैसे हम लोग भी करें ॥९ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो विद्वान् लोग विद्या चाहनेवाले मनुष्यों को विद्वान् करें, शीघ्र जिसको शिक्षा हुई हो उस घोड़े के समान तीक्ष्णता से विद्या को प्राप्त होता है, जैसे बहुत प्रकार के संसार का स्रष्टा ईश्वर सब की व्यवस्था करता है, वैसे अध्यापक और अध्येता होवें ॥९ ॥
बार पढ़ा गया

संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(त्वष्टा) विद्यादिसद्गुणैः प्रकाशमानः (वीरम्) (देवकामम्) यो देवान् विदुषः कामयते तम् (जजान) जनयति (त्वष्टुः) प्रदीप्ताच्छिक्षणात् (अर्वा) शीघ्रं गन्ता (जायते) (आशुः) तीव्रवेगः (अश्वः) तुरङ्गः (त्वष्टा) स्वात्मप्रकाशितः (इदम्) (विश्वम्) सर्वम् (भुवनम्) लोकजातम् (जजान) जनयति (बहोः) बहुविधस्य संसारस्य (कर्त्तारम्) (इह) अस्मिन् संसारे (यक्षि) यजसि सङ्गच्छसे (होतः) आदातः ॥९ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे होतस्त्वं यथा त्वष्टा विद्वान् देवकामं वीरं जजान यथा त्वष्टुराशुरर्वाश्वो जायते, यथा त्वष्टेदं विश्वं भुवनं जजान, तं बहोः कर्त्तारमिह यक्षि तथा वयमपि कुर्याम ॥९ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये विद्याकामान् मनुष्यान् विदुषः कुर्य्युर्ये सद्योजातशिक्षोऽश्व इव तीव्रवेगेन विद्याः प्राप्नोति, यथा बहुविधस्य संसारस्य स्रष्टेश्वरः सर्वान् व्यवस्थापयति, तथाऽध्यापकाऽध्येतारो भवन्तु ॥९ ॥
बार पढ़ा गया

मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे विद्वान लोक विद्या शिकणाऱ्या जिज्ञासूंना विद्वान करतात त्यांना गतिमान अश्वाप्रमाणे विद्या प्राप्त होते. जगाचा निर्माता ईश्वर ज्याप्रमाणे सर्वांची अनेक प्रकारे व्यवस्था करतो, तसेच अध्यापक व अध्येता यांचे संबंध असावेत.