वांछित मन्त्र चुनें

ऋजी॑ते॒ परि॑ वृङ्धि॒ नोऽश्मा॑ भवतु नस्त॒नूः। सोमो॒ऽअधि॑ ब्रवीतु॒ नोऽदि॑तिः॒ शर्म॑ यच्छतु ॥४९ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ऋजी॑ते। परि॑। वृ॒ङ्धि॒। नः॒। अश्मा॑। भ॒व॒तु॒। नः॒। त॒नू। सोमः॑। अधि॑। ब्र॒वी॒तु॒। नः॒। अदि॑तिः। शर्म॑। य॒च्छ॒तु॒ ॥४९ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:29» मन्त्र:49


बार पढ़ा गया

हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिए, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् पुरुष ! आप (ऋजीते) सरल व्यवहार में (नः) हमारे शरीर से रोगों को (परि, वृङ्धि) सब ओर से पृथक् कीजिए, जिससे (नः) हमारा (तनूः) शरीर (अश्मा) पत्थर के तुल्य दृढ़ (भवतु) हो, जो (सोमः) उत्तम औषधि है, उस और जो (अदितिः) पृथिवी है, उन दोनों का आप (अधि, ब्रवीतु) अधिकार उपदेश कीजिए और (नः) हमारे लिए (शर्म) सुख वा घर (यच्छतु) दीजिए ॥४९ ॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य ब्रह्मचर्य, औषध, पथ्य और सुन्दर नियमों के सेवन से शरीरों की रक्षा करें तो उन के शरीर दृढ़ होवें, जैसे शरीरों का पृथिवी आदि का बना घर है, वैसे जीव का यह शरीर घर है ॥४९ ॥
बार पढ़ा गया

संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

अन्वय:

(ऋजीते) सरले व्यवहारे (परि) सर्वतः (वृङ्धि) वर्त्तय (नः) अस्माकम् (अश्मा) यथा पाषाणः (भवतु) (नः) अस्माकम् (तनूः) शरीरम् (सोमः) ओषधिराजः (अधि) (ब्रवीतु) (नः) अस्मभ्यम् (अदितिः) पृथिवी (शर्म) गृहं सुखं वा (यच्छतु) ददातु ॥४९ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वंस्त्वमृजीते नोऽस्माकं शरीराद् रोगान् परिवृङ्ग्धि यतो नस्तनूरश्मा भवतु, यः सोमोऽस्ति तं या चादितिरस्ति ते भवान्नोऽधि ब्रवीतु नः शर्म च यच्छतु ॥४९ ॥
भावार्थभाषाः - यदि मनुष्या ब्रह्मचर्यौषधपथ्यसुनियमसेवनेन शरीराणि रक्षेयुस्तर्हि तेषां शरीराणि दृढानि भवेयुर्यथा शरीराणां पार्थिवादि गृहमस्ति तथा जीवस्येदं गृहम् ॥४९ ॥
बार पढ़ा गया

मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे ब्रह्मचर्य, औषध, पथ्य व सुंदर नियम पाळून शरीराचे रक्षण करतात तेव्हा त्यांची शरीरे मजबूत होतात. जसे पृथ्वी हे माणसाचे घर आहे तसे शरीर हे जीवांचे घर आहे.