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होता॑ यक्षत् ति॒स्रो दे॒वीर्न भे॑ष॒जं त्रय॑स्त्रि॒धात॑वो॒ऽपस॒ऽ इडा॒ सर॑स्वती॒ भार॑ती म॒हीः। इन्द्र॑पत्नीर्ह॒विष्म॑ती॒र्व्यन्त्वाज्य॑स्य॒ होत॒र्यज॑ ॥८ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

होता॑। य॒क्ष॒त्। ति॒स्रः। दे॒वीः। न। भे॒ष॒जम्। त्रयः॑। त्रि॒धात॑व॒ इति॑ त्रि॒ऽधात॑वः। अ॒पसः॑। इडा॑। सर॑स्वती। भार॑ती। म॒हीः। इन्द्र॑पत्नी॒रितीन्द्र॑ऽपत्नीः। ह॒विष्म॑तीः। व्यन्तु॑। आज्य॑स्य। होतः॑। यज॑ ॥८ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:28» मन्त्र:8


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (होतः) सुख चाहनेवाले जन ! जैसे (होता) विद्या का देने लेनेवाला अध्यापक (आज्यस्य) प्राप्त होने योग्य पढ़ने-पढ़ाने रूप व्यवहार को (यक्षत्) प्राप्त होवे, जैसे (त्रिधातवः) हाड़, चरबी और वीर्य इन तीन धातुओं के वर्धक (अपसः) कर्मों में चेष्टा करते हुए (त्रयः) अध्यापक, उपदेशक और वैद्य (तिस्रः) तीन (देवीः) सब विद्याओं की प्रकाशिका वाणियों के (न) समान (भेषजम्) औषध को (महीः) बड़ी पूज्य (इडा) प्रशंसा के योग्य (सरस्वती) बहुत विज्ञानवाली और (भारती) सुन्दर विद्या का धारण वा पोषण करनेवाली (हविष्मतीः) विविध विज्ञानों के सहित (इन्द्रपत्नीः) जीवात्मा की स्त्रियों के तुल्य वर्त्तमान वाणी (व्यन्तु) प्राप्त हों, वैसे (यज) उन को सङ्गत कीजिए ॥८ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे प्रशंसित विज्ञानवती और उत्तम बुद्धिमती स्त्रियाँ अपने योग्य पतियों को प्राप्त होकर प्रसन्न होती हैं, वैसे अध्यापक, उपदेशक और वैद्य लोग स्तुति, ज्ञान और योगधारणायुक्त तीन प्रकार की वाणियों को प्राप्त होकर आनन्दित होते हैं ॥८ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(होता) विद्याया दाताऽऽदाता वा (यक्षत्) (तिस्रः) त्रित्वसङ्ख्याकाः (देवीः) सकलविद्याप्रकाशिकाः (न) इव (भेषजम्) औषधम् (त्रयः) अध्यापकोपदेशकवैद्याः (त्रिधातवः) त्रयोऽस्थिमज्जवीर्याणि धातवो येभ्यस्ते (अपसः) कर्मठाः (इडा) प्रशंसितुमर्हा (सरस्वती) बहुविज्ञानयुक्ता (भारती) सुष्ठु विद्याया धारिका पोषिका वा वाणी (महीः) महती पूज्याः (इन्द्रपत्नीः) इन्द्रस्य जीवस्य पत्नीः स्त्रीवद् वर्त्तमानाः (हविष्मतीः) विविधविज्ञानसहिताः (व्यन्तु) प्राप्नुवन्तु (आज्यस्य) प्राप्तुं योग्यस्याऽध्यापनाऽध्ययनव्यवहारस्य (होतः) (यज) ॥८ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे होतर्यथा होताऽऽज्यस्य यक्षत्। यथा त्रिधातवोऽपसस्त्रयस्तिस्रो देवीर्न भेषजं मही इडा सरस्वती भारती च हविष्मतीरिन्द्रपत्नीर्व्यन्तु तथा यज ॥८ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा प्रशस्ता विज्ञानवती सुमेधा च स्त्रियः स्वसदृशान् पतीन् प्राप्य मोदन्ते तथाऽध्यापकोपदेशकवैद्या मनुष्याः स्तुतिविज्ञानयोगधारणायुक्तास्त्रिविधा वाचः प्राप्याऽऽनन्दन्ति ॥८ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जशा प्रशंसा करण्यास योग्य विज्ञानवेत्त्या बुद्धिमान स्रिया योग्य पती प्राप्त करतात व प्रसन्न होतात तसे अध्यापक, उपदेशक व वैद्य हे (स्तुती, ज्ञान व योगधारणायुक्त अशा) तीन विज्ञानयुक्त वाणींना प्राप्त करून आनंदित होतात.