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दे॒वीस्ति॒स्रस्ति॒स्रो दे॒वीर्व॑यो॒धसं॒ पति॒मिन्द्र॑मवर्धयन्। जग॑त्या॒ छन्द॑सेन्द्रि॒यꣳ शूष॒मिन्द्रे॒ वयो॒ द॒ध॑द् वसु॒वने॑ वसु॒धेय॑स्य व्यन्तु॒ यज॑ ॥४१ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

दे॒वीः। ति॒स्रः। ति॒स्रः। दे॒वीः। व॒यो॒धस॒मिति॑ वयः॒ऽधस॑म्। पति॑म्। इन्द्र॑म्। अ॒व॒र्ध॒य॒न्। जग॑त्या। छन्द॑सा। इ॒न्द्रि॒यम्। शूष॑म्। इन्द्रे॑। वयः॑। दध॑त्। व॒सु॒वन॒ इति॑ वसु॒ऽवने॑। व॒सु॒धेय॒स्येति॑ वसु॒ऽधेय॑स्य। व्य॒न्तु॒। यज॑ ॥४१ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:28» मन्त्र:41


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब राज प्रजा का धर्म विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! जैसे (तिस्रः) तीन (देवीः) तेजस्विनी विदुषी (तिस्रः) तीन पढ़ाने, उपदेश करने और परीक्षा लेनेवाली (देवीः) विदुषी स्त्री (वयोधसम्) जीवन धारण करने हारे (पतिम्) रक्षक स्वामी (इन्द्रम्) उत्तम ऐश्वर्यवाले चक्रवर्त्ती राजा को (अवर्धयन्) बढ़ावें तथा (व्यन्तु) व्याप्त होवें, वैसे (जगत्या, छन्दसा) जगती छन्द से (इन्द्रे) अपने आत्मा में (शूषम्, वयः) शत्रुसेना में व्यापक होनेवाले अपने बल तथा (इन्द्रियम्) कान आदि इन्द्रिय को (दधत्) धारण करते हुए (वसुधेयस्य) धनकोष के (वसुवने) धनदाता के अर्थ (यज) अग्निहोत्रादि यज्ञ कीजिए ॥४१ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे पढ़ने, उपदेश करने और परीक्षा लेनेवाले स्त्री-पुरुष प्रजाओं में विद्या और श्रेष्ठ उपदेशों का प्रचार करें, वैसे राजा इनकी यथावत् रक्षा करे। इस प्रकार राजपुरुष और प्रजापुरुष आपस में प्रसन्न हुए सब ओर से वृद्धि को प्राप्त हुआ करें ॥४१ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ राजप्रजाधर्मविषयमाह ॥

अन्वय:

(देवीः) देदीप्यमाना विदुष्यः (तिस्रः) त्रित्वसंख्याकाः (तिस्रः) अध्यापकोपदेशकपरीक्षित्र्यः (देवीः) अत्रादरार्थं द्विरुक्तिः (वयोधसम्) जीवनधारकम् (पतिम्) पालकं स्वामिनम् (इन्द्रम्) परमैश्वर्यवन्तं सम्राजम् (अवर्द्धयन्) वर्धयेयुः (जगत्या) (छन्दसा) (इन्द्रियम्) (शूषम्) बलम् (इन्द्रे) स्वात्मनि (वयः) शत्रुबलव्यापकम् (दधत्) (वसुवने) (वसुधेयस्य) (व्यन्तु) व्याप्नुवन्तु (यज) ॥४१ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! यथा तिस्रो देवीस्तिस्रो देवीर्वयोधसं पतिमिन्द्रमवर्द्धयन् व्यन्तु तथा जगत्या छन्दसेन्द्रे शूषमिन्द्रियं वयो दधत् सन् वसुधेयस्य वसुवने यज ॥४१ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथाऽध्यापकोपदेशकपरीक्षकाः स्त्रीपुरुषाः प्रजासु विद्यासदुपदेशान् प्रचारयेयुस्तथा राजैतेषां यथावद् रक्षां कुर्यादेवं राजप्रजाजनाः परस्परं प्रीताः सन्तः सर्वतो वृद्धिं प्राप्नुवन्तु ॥४१ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे अध्यापक व उपदेशक परीक्षा करून स्री-पुरुषांमध्ये व प्रजेमध्ये विद्या व श्रेष्ठ उपदेशाचा प्रचार करतात, तसे राजाने त्यांचे यथावत रक्षण करावे. याप्रमाणे राजा व प्रजा यांनी प्रसन्नतेने परस्पर उत्कर्ष साधावा.