वांछित मन्त्र चुनें

होता॑ यक्ष॒त् तनू॒नपा॑तमू॒तिभि॒र्जेता॑र॒मप॑राजितम्। इन्द्रं॑ दे॒वस्व॒र्विदं॑ प॒थिभि॒र्मधु॑मत्तमै॒र्नरा॒शꣳसे॑न॒ तेज॑सा॒ वेत्वाज्य॑स्य॒ होत॒र्यज॑ ॥२ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

होता॑। य॒क्ष॒त्। तनू॒नपा॑त॒मिति तनू॒ऽनपा॑तम्। ऊ॒तिभि॒रित्यू॒तिऽभिः॑। जेता॑रम्। अप॑राजित॒मित्यप॑राऽजितम्। इन्द्र॑म्। दे॒वम्। स्व॒र्विद॒मिति॑ स्वः॒ऽविद॑म्। प॒थिभि॒रिति॑ प॒थिऽभिः॑। मधु॑मत्तमै॒रिति॒ मधु॑मत्ऽतमैः। नरा॒शꣳसे॑न। तेज॑सा। वेतु॑। आज्य॑स्य। होतः॑। यज॑ ॥२ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:28» मन्त्र:2


बार पढ़ा गया

हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

राजपुरुष कैसे हों, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (होतः) ग्रहण करनेवाले पुरुष ! आप जैसे (होता) सुख का दाता (ऊतिभिः) रक्षाओं तथा (मधुमत्तमैः) अतिमीठे जल आदि से युक्त (पथिभिः) धर्मयुक्त मार्गों से (तनूनपातम्) शरीरों के रक्षक (जेतारम्) जयशील (अपराजितम्) शत्रुओं से न जीतने योग्य (स्वर्विदम्) सुख को प्राप्त (देवम्) विद्या और विनय से सुशोभित (इन्द्रम्) परम ऐश्वर्यकारक राजा का (यक्षत्) सङ्ग करे (नराशंसेन) मनुष्यों से प्रशंसा की गई (तेजसा) प्रगल्भता से (आज्यस्य) जानने योग्य विषय को (वेतु) प्राप्त हो, वैसे (यज) सङ्ग कीजिये ॥२ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो राजा लोग स्वयं राज्य के न्याय मार्ग में चलते हुए प्रजाओं की रक्षा करें, वे पराजय को न प्राप्त होते हुए शत्रुओं के जीतनेवाले हों ॥२ ॥
बार पढ़ा गया

संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

राजपुरुषाः कीदृशाः स्युरित्याह ॥

अन्वय:

(होता) सुखस्य प्रदाता (यक्षत्) सङ्गच्छेत् (तनूनपातम्) यः शरीराणि पाति तम् (ऊतिभिः) रक्षादिभिः (जेतारम्) जयशीलम् (अपराजितम्) अन्यैः पराजेतुमशक्यम् (इन्द्रम्) परमैश्वर्यकारकं राजानम् (देवम्) विद्याविनयाभ्यां सुशोभितम् (स्वर्विदम्) प्राप्तसुखम् (पथिभिः) धर्म्यैर्मार्गैः (मधुमत्तमैः) अतिशयेन मधुरजलादियुक्तैः (नराशंसेन) नरैराशंसितेन (तेजसा) प्रागल्भ्येन (वेतु) प्राप्नोतु (आज्यस्य) विज्ञेयम्। अत्र कर्मणि षष्ठी। (होतः) (यज) ॥२ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे होतर्भवान् यथा होतोतिभिर्मधुमत्तमैः पथिभिस्तनूनपातं जेतारमपराजितं स्वर्विदं देवमिन्द्रं यक्षत् नराशंसेन तेजसाऽऽज्यस्य वेतु तथा यज ॥२ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यदि राजानः स्वयं न्यायमार्गेषु गच्छन्तः प्रजानां रक्षा विदध्युस्तेऽपराजितारः सन्तः शत्रूणां विजेतारः स्युः ॥२ ॥
बार पढ़ा गया

मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे राजे न्यायाने राज्य चालवितात व प्रजेचे रक्षण करतात. त्यांचा पराभव न होता ते शत्रूंना जिंकतात.