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दे॒वीर्द्वार॒ऽ इन्द्र॑ꣳसङ्घा॒ते वी॒ड्वीर्याम॑न्नवर्द्धयन्। आ व॒त्सेन॒ तरु॑णेन कुमा॒रेण॑ च मीव॒तापार्वा॑णꣳ रे॒णुक॑काटं नुदन्तां वसु॒वने॑ वसु॒धेय॑स्य व्यन्तु॒ यज॑ ॥१३ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

दे॒वीः। द्वारः॑। इन्द्र॑म्। स॒ङ्घा॒त इति॑ सम्ऽघा॒ते। वी॒ड्वीः। याम॑न्। अ॒व॒र्द्ध॒य॒न्। आ। व॒त्सेन॑। तरु॑णेन। कु॒मा॒रेण॑। च॒। मी॒व॒ता। अप॑। अर्वा॑णम्। रे॒णुक॑काट॒मिति॑ रे॒णुऽक॑काटम्। नु॒द॒न्ता॒म्। वसु॒वन॒ इति॑ वसु॒ऽवने॑। व॒सु॒धेय॒स्येति॑ वसु॒ऽधेय॑स्य। व्य॒न्तु॒। यज॑ ॥१३ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:28» मन्त्र:13


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! जैसे (वीड्वीः) विशेषकर स्तुति के योग्य (देवीः) प्रकाशमान (द्वारः) द्वार (रेणुककाटम्) धूलि से युक्त कूप अर्थात् अन्धकुआ को (यामन्) मार्ग में छोड़ के (तरुणेन) ज्वान (मीवता) शूर दुष्ट हिंसा करते हुए (च) और (कुमारेण) ब्रह्मचारी (वत्सेन) बछरे के तुल्य जन के साथ वर्त्तमान (अर्वाणम्) चलते हुए घोड़े यथा (इन्द्रम्) ऐश्वर्य को (आ, अवर्धयन्) बढ़ाते हैं, (वसुवने) धन के सेवने योग्य (सङ्घाते) सम्बन्ध में (वसुधेयस्य) धनधारक संसार के विघ्न को (अप, नुदन्ताम्) प्रेरित करो और (व्यन्तु) प्राप्त होओ, वैसे (यज) प्राप्त हूजिये ॥१३ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! जैसे बटोही जन मार्ग में वर्त्तमान कूप को छोड़, शुद्ध मार्ग कर प्राणियों को सुख से पहुँचाते हैं, वैसे बाल्यावस्था में विवाहादि विघ्नों को हटा विद्या प्राप्त करा के अपने सन्तानों को सुख के मार्ग में चलावें। १३ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(देवीः) देदीप्यमानाः (द्वारः) द्वाराणि (इन्द्रम्) ऐश्वर्यम् (सङ्घाते) सम्बन्धे (वीड्वीः) विशेषेण स्तोतुं योग्याः (यामन्) यामनि मार्गे (अवर्द्धयन्) वर्द्धयन्ति (आ) (वत्सेन) वत्सवद् वर्त्तमानेन (तरुणेन) युवाऽवस्थेन (कुमारेण) अकृतविवाहेन (च) (मीवता) हिंसता (अप) (अर्वाणम्) गच्छन्तमश्वम् (रेणुककाटम्) रेणुकैर्युक्तं कूपम् (नुदन्ताम्) प्रेरयन्तु (वसुवने) (वसुधेयस्य) (व्यन्तु) प्राप्नुवन्तु (यज) ॥१३ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! यथा वीड्वीर्देवीर्द्वारो रेणुककाटं यामन् वर्जयित्वा तरुणेन मीवता कुमारेण वत्सेन च सह वर्त्तमानमर्वाणमिन्द्रमावर्द्धयन् वसुवने सङ्घाते वसुधेयस्य विघ्नमप नुदन्तां वयन्तु तथा यज ॥१३ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्याः ! यथा पथिका मार्गे वर्त्तमानं कूपं निवार्य शुद्धं मार्गं कृत्वा प्राणिनः सुखेन गमयन्ति, तथा बाल्यावस्थायां विवाहादीन् विघ्नान् निवार्य विद्यां प्रापय्य स्वसन्तानान् सुखमार्गे गमयन्तु ॥१३ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! जसे वाटसरू वाटेत जाताना धुळीने भरलेल्या विहिरीकडे न जाता चांगल्या मार्गाने व सुखाने प्राण्यांना योग्य ठिकाणी पोहोचवितात तसे बाल्यावस्थेत विवाह वगैरे विघ्नात न अडकविता विद्या प्राप्त करून संतानांना सुखाच्या मार्गाने न्यावे.