पा॒हि नो॑ऽ अग्न॒ऽ एक॑या पा॒ह्यु᳕त द्वि॒तीय॑या। पा॒हि गी॒र्भि॑स्ति॒सृभि॑रूर्जां पते पा॒हि च॑त॒सृभि॑र्वसो ॥४३ ॥
पा॒हि। नः॒। अ॒ग्ने॒। एक॑या। पा॒हि। उ॒त। द्वि॒तीय॑या। पा॒हि। गी॒र्भिरिति॑ गीः॒ऽभिः। ति॒सृभि॒रिति॑ ति॒सृऽभिः॑। ऊ॒र्जा॒म्। प॒ते॒। पा॒हि। च॒त॒सृभि॒रिति॑ चत॒सृऽभिः॑। व॒सो॒ इति॑ वसो ॥४३ ॥
हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
आप्त धर्मात्मा जन क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥
संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
आप्ताः किं कुर्युरित्याह ॥
(पाहि) रक्ष (नः) अस्मान् (अग्ने) पावकवद्विद्वन् (एकया) सुशिक्षया (पाहि) (उत) अपि (द्वितीयया) अध्यापनक्रियया (पाहि) (गीर्भिः) वाग्भिः (तिसृभिः) कर्मोपासनाज्ञानज्ञापिकाभिः (ऊर्जाम्) बलानाम् (पते) पालक (पाहि) (चतसृभिः) धर्मार्थकाममोक्षविज्ञापिकाभिः (वसो) सुवासप्रद ॥४३ ॥