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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
कैसे जन धन को प्राप्त होते हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है।
पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! जो आप (नः) हमारे (सखीनाम्) मित्रों तथा (जरितॄणाम्) स्तुति करनेवाले जनों के (अविता) रक्षक (ऊतये) प्रीति आदि के अर्थ (शतम्) सैकड़ों प्रकार से (सु, भवासि) सुन्दर रीति कर के हूजिये सो आप (अभि) सब ओर से सत्कार के योग्य हों ॥४१ ॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य अपने मित्रों के रक्षक, असंख्य प्रकार का सुख देने हारे, अनाथों की रक्षा में प्रयत्न करते हैं, वे असंख्य धन को प्राप्त होते हैं ॥४१ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
कीदृशा जना धनं लभन्त इत्याह ॥
अन्वय:
(अभि) सर्वतः। अत्र निपातस्य च [अ०६.३.१३६] इति दीर्घः। (सु) शोभने (नः) अस्माकम् (सखीनाम्) मित्राणाम् (अविता) रक्षकः (जरितॄणाम्) स्तोतॄणाम् (शतम्) (भवासि) भवेः (ऊतये) प्रीत्याद्याय ॥४१ ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! यस्त्वं नः सखीनां जरितॄणां चावितोतये शतं सु भवासि सोऽभिपूज्यः स्याः ॥४१ ॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्याः सुहृदां रक्षका असंख्यसुखप्रदा अनाथानां रक्षणे प्रवर्त्तन्ते, तेऽसंख्यं धनं लभन्ते ॥४१ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे आपल्या मित्रांचे रक्षक, अत्यंत सुखदायक, अनाथांचे पालक असतात त्यांना खूप धन प्राप्त होते.