वांछित मन्त्र चुनें

कस्त्वा॑ स॒त्यो मदा॑नां॒ मꣳहि॑ष्ठो मत्स॒दन्ध॑सः। दृ॒ढा चि॑दा॒रुजे॒ वसु॑ ॥४० ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

कः। त्वा॒। स॒त्यः। मदा॑नाम्। मꣳहि॑ष्ठः। म॒त्स॒त्। अन्ध॑सः। दृ॒ढा। चि॒त्। आ॒रुज॒ऽइत्या॒ऽरुजे॑। वसु॑ ॥४० ॥

यजुर्वेद » अध्याय:27» मन्त्र:40


बार पढ़ा गया

हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! जो (कः) सुखदाता (सत्यः) श्रेष्ठों में उत्तम (मंहिष्ठः) अति महत्त्व युक्त विद्वान् (त्वा) आप को (अन्धसः) अन्न से हुए (मदानाम्) आनन्दों में (मत्सत्) प्रसन्न करे (आरुजे) अतिरोग के अर्थ ओषधियों को जैसे इकट्ठा करे (चित्) वैसे (दृढ़ा) दृढ़ (वसु) द्रव्यों का सञ्चय करे, सो हम को सत्कार के योग्य होवे ॥४० ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जो सत्य में प्रीति रखने और आनन्द देनेवाला विद्वान् परोपकार के लिये रोगनिवारणार्थ ओषधियों के तुल्य वस्तुओं का सञ्चय करे, वही सत्कार के योग्य होवे ॥४० ॥
बार पढ़ा गया

संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(कः) सुखप्रदः (त्वा) त्वाम् (सत्यः) सत्सु साधुः (मदानाम्) हर्षाणाम् (मंहिष्ठः) अतिशयेन महत्त्वयुक्तः (मत्सत्) आनन्दयेत् (अन्धसः) अन्नात् (दृढा) दृढानि (चित्) इव (आरुजे) समन्ताद् रोगाय (वसु) वसूनि द्रव्याणि। अत्र सुपां सुलुग् [अ०७.१.३९] इति जसो लुक् ॥४० ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! यः कः सत्यो मंहिष्ठो विद्वांस्त्वान्धसो मदानां मध्ये मत्सदारुजे। औषधानि चिदिव दृढा वसु संचिनुयात् सोऽस्माभिः पूजनीयः ॥४० ॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। यः सत्यप्रिय आनन्दप्रदो विद्वान् परोपकाराय रोगनिवारणायौषधमिव वस्तूनि संचिनुयात् स एव सत्कारमर्हेत् ॥४० ॥
बार पढ़ा गया

मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जो विद्वान सत्यावर प्रेम करणारा, आनंद देणारा व परोपकार करून रोग निवारणासाठी औषधांचा संचय करणारा असतो तोच सत्कार करण्यायोग्य असतो.