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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् पुरुष ! (चित्रः) आश्चर्य कर्म करने हारे (सदावृधः) जो सदा बढ़ता है, उस के (सखा) मित्र (आ, भुवत्) हूजिये (कया) किसी (ऊती) रक्षणादिक्रिया से (नः) हमारी रक्षा कीजिये, (कया) किसी (शचिष्ठया) अत्यन्त निकट सम्बन्धिनी (वृता) वर्त्तमान क्रिया से हम को युक्त कीजिये ॥३९ ॥
भावार्थभाषाः - जो आश्चर्य गुण, कर्म, स्वभाववाला विद्वान् सब का मित्र हो और कुकर्मों की निवृत्ति करके उत्तम कर्मों से हम को युक्त करे, उस का हमको सत्कार करना चाहिये ॥३९ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
अन्वय:
(कया) (नः) अस्मान् (चित्रः) अद्भुतः (आ, भुवत्) भवेत् (ऊती) रक्षणादिक्रियया। अत्र सुपाम् [अ०७.१.३९] इति पूर्वसवर्णादेशः (सदावृधः) यः सदा वर्धते तस्य (सखा) (कया) (शचिष्ठया) अतिशयितया क्रियया (वृता) या वर्त्तते तया ॥३९ ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! चित्रः सदावृधः सखाऽऽभुवत् कयोती नो रक्षेः, कया शचिष्ठया वृताऽऽस्मान्नियोजयेः ॥३९ ॥
भावार्थभाषाः - योऽद्भुतगुणकर्मस्वभावो विद्वान् सर्वस्य मित्रं भूत्वा कुकर्माणि निवर्त्य सुकर्मभिरस्मान् योजयेत् सोऽस्माभिः सत्कर्त्तव्यः ॥३९ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जो विद्वान आश्चर्य करण्यायोग्य गुण, कर्म, स्वभावाचा असून सर्वांचा मित्र असतो. कुकर्माचा नाश करून उत्तमकर्मात सर्वांना युक्त करतो अशा माणसाचा सन्मान केला पाहिजे.