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वायो॑ शु॒क्रोऽ अ॑यामि ते॒ मध्वो॒ऽअग्रं॒ दिवि॑ष्टिषु। आ या॑हि॒ सोम॑पीतये स्पा॒र्हो दे॑व नि॒युत्व॑ता ॥३० ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

वायो॒ऽइति॒ वायो॑। शु॒क्रः। अ॒या॒मि॒। ते॒। मध्वः॑। अग्र॑म्। दिवि॑ष्टिषु। आ। या॒हि॒। सोम॑ऽपीतय॒ इति॒ सोम॑पीतये। स्पा॒र्हः। दे॒व॒। नि॒युत्व॑ता ॥३० ॥

यजुर्वेद » अध्याय:27» मन्त्र:30


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्य को क्या करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (वायो) जो वायु के समान वर्त्तमान विद्वन् ! (शुक्रः) शुद्धिकारक आप हैं, (ते) आप के (मध्वः) मधुर वचन के (अग्रम्) उत्तम भाग को (दिविष्टिषु) उत्तम सङ्गतियों में मैं (अयामि) प्राप्त होता हूँ। हे (देव) उत्तम गुणयुक्त विद्वान् पुरुष ! (स्पार्हः) उत्तम गुणों की अभिलाषा से युक्त के पुत्र आप (नियुत्वता) वायु के साथ (सोमपीतये) उत्तम ओषधियों का रस पीने के लिये (आ, याहि) अच्छे प्रकार प्राप्त हूजिये ॥३० ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! जैसे वायु सब रस और गन्ध आदि को पीके सब को पुष्ट करता है, वैसे तू भी सब को पुष्ट किया कर ॥३० ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्येण किं कार्य्यमित्याह ॥

अन्वय:

(वायो) वायुरिव वर्त्तमान (शुक्रः) शुद्धिकरः (अयामि) प्राप्नोमि (ते) तव (मध्वः) मधुरस्य (अग्रम्) उत्तमं भागम् (दिविष्टिषु) दिव्यासु सङ्गतिषु (आ, याहि) (सोमपीतये) सदोषधिरसपानाय (स्पार्हः) यः स्पृहयति तस्याऽयम् (देव) दिव्यगुणसम्पन्न (नियुत्वता) वायुना सह ॥३० ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे वायो ! यो वायुरिव शुक्रस्त्वमसि ते मध्वोग्रं दिविष्टिष्वहमयामि। हे देव ! स्पार्हस्त्वं नियुत्वता सह सोमपीतय आयाहि ॥३० ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्याः ! यथा वायुः सर्वान् रसगन्धादीन् पीत्वा सर्वान् पोषयति तथा त्वं सर्वान् पुषाण ॥३० ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! जसा वायू सर्व रस व गंध पिऊन सर्वांना पुष्ट करतो तसे तुम्हीही सर्वांना पुष्ट करा.