हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर मनुष्यों को कैसी वाणी का सेवन करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥
संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनर्मनुष्यैः कीदृशी वाणी सेवनीया इत्याह ॥
(तिस्रः) त्रित्वसंख्याकाः (देवीः) कमनीयाः (बर्हिः) अन्तरिक्षम्। (आ) समन्तात् (इदम्) (सदन्तु) प्राप्नुवन्तु (इडा) स्तोतुमर्हा (सरस्वती) प्रशस्तविज्ञानवती (भारती) सर्वशास्त्रधारिणी (मही) महती (गृणाना) स्तुवन्ती ॥१९ ॥